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पितृपक्ष 10 से, पितरों की मुक्ति के लिए करेंगे कार्य

25 सितंबर तक चलेंगे, पितरों को नियमित रूप से अर्पित करते हैं जल - पूर्वजों का लेते हैं आशीर्वाद, मांगते हैं गलतियों के लिए क्षमा धार्मिक मान्याताओं के अनुसार, हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का काफी महत्व है। पितृ पक्ष में पितरों की मुक्ति के लिए कार्य किए जाते हैं। पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है।

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अजमेर

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Dilip Sharma

Sep 06, 2022

Special dan on pitra paksha

Special dan on pitra paksha

धौलपुर. धार्मिक मान्याताओं के अनुसार, हिन्दू धर्म में पितृपक्ष का काफी महत्व है। पितृ पक्ष में पितरों की मुक्ति के लिए कार्य किए जाते हैं। पितृ पक्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से शुरू होता है और आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। इस बार पितृ पक्ष 10 सितंबर से शुरू हो रहे हैं जो 25 सितंबर तक चलेंगे। पितृपक्ष में पूर्वजों का आशीर्वाद लिया जाता है और गलतियों के लिए क्षमा मांगी जाती है। इन दिनों में पूर्वजों या पितरों को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हैं और उनके लिए पिण्डदान करते हैं। मान्यता है कि श्राद्ध करने से घर में सुख-समृद्धि आती है। ज्योतिषों के मुताबिक, पितृ पक्ष श्राद्ध, पर्व श्राद्ध (पार्वण श्राद्ध) होते हैं और इन्हें करने का शुभ समय कुतुप मुहूर्त और रोहिना मुहूर्त होता है। इन दोनों शुभ मुहूर्त के बाद अपराह्न काल समाप्त होने तक भी मुहूर्त चलता है। श्राद्ध के अंत में तर्पण किया जाता है। जिसमें सूर्य की तरफ मुंह करके घास की कुश (डाव) से तर्पण करते हैं।

पितृ पक्ष के मुहूर्त

कुतुप मुहूर्त - दोपहर 12:11 बजे से दोपहर 1 बजे तक
रोहिना मुहूर्त - दोपहर 1 बजे से दोपहर 1:49 बजे तक,

अपराह्न मुहूर्त - अपराह्न 1:49 बजे से अपराह्न 4:17 बजे तक

पितृ पक्ष में श्राद्ध की तिथियां

पूर्णिमा श्राद्ध: 10 सितंबर, प्रतिपदा श्राद्ध: 10 सितंबर, द्वितीया श्राद्ध : 11 सितंबर, तृतीया श्राद्ध: 12 सितंबर, चतुर्थी श्राद्ध: 13 सितंबर, पंचमी श्राद्ध : 14 सितंबर, षष्ठी श्राद्ध: 15 सितंबर, सप्तमी श्राद्ध: 16 सितंबर, अष्टमी श्राद्ध: 18 सितंबर, नवमी श्राद्ध: 19 सितंबर, दशमी श्राद्ध: 20 सितंबर, एकादशी श्राद्ध: 21 सितंबर, द्वादशी श्राद्ध: 22 सितंबर, त्रयोदशी श्राद्ध: 23 सितंबर, चतुर्दशी श्राद्ध: 24 सितंबर तथा अमावस्या श्राद्ध: 25 सितंबर को है।

ऐसे करते हैं पितरों को याद

पितृपक्ष में पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करते हैं। यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है। जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रखा जाता है। जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है। उसी दिन किसी जरूरतमंद को भोजन भी कराया जाता है।


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