अजमेर. तीर्थराज पुष्कर की महत्ता सहस्र बरसों से है। इसकी धार्मिक, आध्यात्मिक और ठेठ राजस्थान संस्कृति देखते बनती है। पुष्कर को तीर्थराज केवल शब्दों में यूं ही नहीं कहा जाता है। इसकी मान्यता पौराणिक काल से जुड़ी है। सृष्टि की रचना से भी इसका संबंध है।
पौराणिक व्याख्यान और दंत कथाओं के अनुसार प्रजापिता ब्रह्मा को सृष्टि की रचना की जिम्मेदारी दी गई थी। इस दौरान समुद्र मंथन भी हुआ। मंथन में कलश, जल, पुष्प सहित कई वस्तुएं बाहर गिरी। इस दौरान ही अरावली क्षेत्र (aravalli hills) में तीन पुष्प भी नीचे गिरे। यह बूढ़ा पुष्कर, मध्य पुष्कर और मौजूदा नया पुष्कर (pushkar) कहलाए। ब्रह्माजी ने पुष्प गिरने के बाद यज्ञ का आयोजन किया।
यज्ञ में देरी से पहुंची सावित्री
पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रजापित ब्रह्माजी को शुभ मुर्हूत में सृष्टि रचना के लिए यज्ञ करना था। उनकी पत्नी सावित्री ने शीघ्र तैयार होकर आने की बात कही। इस दौरान शुभ मुर्हूत की घड़ी नजदीक आ गई। सावित्री के आने में विलंब (late) को देखकर प्रजापिता ने एक महिला को गौमुख से शुद्ध कराने के बाद पत्नी को दर्जा दिया और यज्ञ में शामिल किया। ब्रह्माजी ने इसे गायित्री (gayatri) का नाम दिया। इसी दौरान सावित्री तैयार होकर यज्ञ के लिए पहुंच गई।
रूठकर पहाड़ी पर बैठी सावित्री
ब्रह्माजी के बगल में गायत्री को बैठा देखकर सावित्री रूठ गई। वे पुष्कर सरोवर के पीछे ऊंची पहाड़ी (hilly mountain) पर बैठ गई। मौजूदा वक्त वहीं उनका मंदिर भी बना है, इसे सावित्री माता का मंदिर कहा जाता है। इसके अलावा सावित्री ने ब्रह्माजी सहित उनकी यज्ञ में बैठी पत्नी को श्राप भी दिया।
यूं बना तीर्थराज पुष्कर
वैदिक मंत्रोच्चार यज्ञ के बाद ब्रह्माजी ने पुष्कर भूमि को शुद्ध किया। यहां सृष्टि की रचना की। तबसे पुष्कर को श्रेष्ठतम तीर्थराज कहा जाता है। धार्मिक मान्यताओं (religious thoughts) के अनुसार श्रद्धालु हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक, उज्जैन, चार धाम सहित देख में विभिन्नद धार्मिक तीर्थयात्रा (pilgrims) और स्नान को जाते हैं। लेकिन इसके बाद श्रद्धालुओं के पुष्कर सरोवर में स्नान-पूजन और प्रजापिता ब्रह्माजी के मंदिर के दर्शन किए बगैर यात्रा अधूरी मानी जाती है।