
बाघों को खतरे में डाल रही वन विभाग की शिथिलता
रमेश शर्मा
सवाईमाधोपुर
वन्यजीव संरक्षण के प्रति सरकारी उदासीनता जंगल और जानवरों को खतरे में डाल रही है। धौलपुर से कोटा तक के रिसायतकालीन टाइगर कॉरीडोर को फिर से अस्तित्व में लाने की योजना पर सात वर्ष पहले सैद्धान्तिक सहमति बनने के बावजूद इस पर रत्तीभर काम भी नहीं हुआ है। प्राकृतिक संसाधनों पर इंसानी अतिक्रमण ने उनका स्वाभाविक पर्यावास छीन लिया है। ऐसे में मनुष्य-पशु संघर्ष वन्यजीव संरक्षण के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।
वन्यजीव संरक्षण के लिए काम करने वाले कुछ संगठनों और व्यक्तियों ने कुछ वर्ष पूर्व प्रस्ताव दिया था कि डेढ़ सौ साल पुराने कॉरिडोर को फिर से जीवंत करने के बाद ही राजस्थान में बाघ संरक्षण के प्रयास पूरी तरह सफल हो सकेंगे। रियासतकाल में धौलपुर से कोटा तक इनका कुदरती कॉरीडोर था। प्रस्ताव के सभी पहलुओं को परखने के बाद सरकार ने भी इसे फिर से विकसित करने की सैद्धान्तिक मंजूरी दे दी। यह काम भी चरणबद्ध रूप में होना था।
वनविभाग के अधिकारियों को मानना है कि बीते कुछ वर्षो में रणथम्भौर में बाघों की तादाद बढ़ने से इनका मूवमेंट पुराने कॉरिडोर पर होने लगा है। कई जगह मानवीय दखल भी कम हुआ है। अब इन्हें संरक्षित और इसे सघन करने की कवायद करने की जरूरत है। इस पर चरणवार काम हो रहा है। हकीकत में यह काम भी इतना धीमा है कि वन्यजीवों के संरक्षित होने की संभावना कम और विलुप्त होने का खतरा ज्यादा है।
क्यों जरूरत हुई
वनों की कटाई एवं मानवीय दखल बढ़ने से बाघों का संरक्षित कॉरिडोर उजड़ता चला गया। जंगल सिमटते चले गए। जलस्रोत सूखते गए। भोजन के लिए आबादी क्षेत्रों की ओर रुख करने से आपसी संघर्ष, तस्तरी आदि बढ़ती गई। कहीं वन क्षेत्रों में खनन भी बढ़ता गया।
क्या था उद्देश्य
वन्यजीव भोजन की तलाश में एक से दूसरे जंगल तक विचरण करते हैं। वनों की कटाई एवं मानवीय दखल बढ़ने से इनके कुदरती रास्ते बंद हो गए। कभी तस्करों का शिकार कभी वाहनों की चपेट में आने से दुर्घटनाएं निरंतर बढ़ती गई। प्रस्ताव का उद्देश्य यही था कि वन्यजीव और खासतौर से टाइगर अपने कुदरती कॉरीडोर से होकर गुजर सकें। इसमें सवाईमाधोपुर, करौली व बूंदी वन क्षेत्र, भरतपुर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी, धौलपुर की केसरबाग, वन विहार, रामविहार मुकुंदरा, रामधारी और झिरी के जंगलों को आपस में जोड़ा जाना था ताकि इन जंगलों में बाघों की बेरोकटोक आवाजाही हो सके।
इनका कहना है...
रणथम्भौर से करौली, धौलपुर व भरतपुर तक टाइगर कॉरीडोर बनाने की योजना है। इस पर विभाग की ओर से काम भी किया जा रहा है। विभाग का फोकस फिलहाल करौली के कैलादेवी अभ्यारण्य को विकसित करने पर है। इसके बाद अन्य जंगलों को विकसित किया जाएगा।
- महेन्द्र शर्मा, उपवन संरक्षक, रणथम्भौर बाघ परियोजना, सवाईमाधोपुर।
करौली व धौलपुर पर टाइगर कॉरिडोर विकसित करने की योजना काफी पुरानी है। पूर्व में जब मै पीसीसीएफ था तब यह योजना बनाई गई थी। इस विषय पर तब काम भी शुरू हुआ था। लेकिन मेरे सेवानिवृत होने के बाद यह योजना अटक सी गई। सरकार व वन विभाग को इस पर ध्यान देना चाहिए, ताकि कॉरिडोर विकसित हो सके और बाघों को बेहतर पर्यावास मिल सके।
आरएन महरोत्रा, पूर्व पीसीसीएफ, वन विभाग, जयपुर।
Published on:
14 May 2022 05:00 am
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