सतेंद्र वाल्मीकि के माता-पिता की कई साल पहले मौत हो चुकी है। वह अकेले घर पर रहते हैं। लोगों की मदद से राशन मिल जाता तो खुद ही घर पर खाना बना लेता। इधर कुछ दिनों से राशन की समस्या बनी रही। राशन और दरवाजे पर हैंडपंप के लिए प्रधान से गुहार भी लगा चुका है, लेकिन प्रधान ने भी बात अनसुनी कर दी। गांव के लोग सतेन्द्र की दशा जानते हैं, फिर भी चार दिन से भूख, प्यास और बुखार से तड़पते हुए सतेंद्र चारपाई पर गिरकर बेहोश हो गया। किसी ने भूख प्यास से तड़पते देखा तो गांव में बात फैली। बच्चे, महिलाएं और बड़े सभी पहुंचकर सिर्फ देखते और चलते बनते। गांव के प्रधान ने भी गांव के मुखिया होने के नाते संवेदना नहीं दिखाई।
सतेन्द्र का व्यवहार अच्छा है लेकिन चर्चा है कि सतेन्द्र दलित है, इसीलिए गांव के लोग मदद नहीं करना चाहते और इसलिए भगवान भरोसे छोड़ दिया। भदरोई में वाल्मीकि समाज के 12 घर हैं, जिनमें सतेंद्र के अलावा एक अन्य परिवार गांव में रहता है। अन्य लोग घर पर ताला डालकर दिल्ली में रहकर काम कर रहे हैं। ग्रामीणों के अनुसार गांव में रहने वाला स्वजातीय परिवार उससे बोलचाल का वास्ता नहीं रखता। हालांकि कस्बे के समाज सेवा करने वाले सतेन्द्र के घर पहुंचे और राहत दी है।
ग्राम प्रधान राजू सिंह गोवर्धनपुर गांव के निवासी हैं। उनके अनुसार 20 दिन पहले सतेंद्र हैंडपंप लगवाने की मांग करने आया था। इस पर कहा कि नए हैंडपंप तो नहीं हैं। कोई रिबोर हैंडपंप होगा, तो तुम्हारे दरवाजे लगवा दूंगा। चार दिन से खाना न मिलने से वह बेहोश हो गया, मुझे किसी ने सूचना नहीं दी। गांव पहुंचकर उसका इलाज कराऊंगा। खाने के लिए राशन दिलवाऊंगा।