योगी सरकार ने लव जिहाद के मुद्दे पर धर्मांतरण रोकने के लिए जो कानून बनाया है उसे चार अलग-अलग याचिकाओं के जरिए इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी गई थी। इन याचिकाओं में आरोप लगाया गया था कि सरकार राजनीतिक फायदा लेने के लिए यह अध्यादेश लेकर आई है। याचिकाकर्ताओं ने यह मांग की थी कि अब तक लव जिहाद कानून के तहत जितने भी केस दर्ज हुए हैं, उनमें आरोपियों को न तो गिरफ्तार किया जाए और न ही इसमें किसी तरह की कार्रवाई हो।
प्रदेश सरकार ने 24 नवंबर को विवाह की खातिर जबरन या झूठ बोलने के धर्म परिवर्तन के मामलों से निपटने के लिए यह अध्यादेश मंजूर किया था जिसके अंतर्गत दोषी व्यक्ति को 10 साल तक की कैद हो सकती है। प्रदेश की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने 28 नवंबर को इस अध्यादेश को मंजूरी दी थी। इस अध्यादेश के तहत महिला का सिर्फ विवाह के लिए ही धर्म परिवर्तन के मामले में विवाह को शून्य घोषित कर दिया जाएगा और जो विवाह के बाद धर्म परिवर्तन करना चाहते हैं उन्हें इसके लिए जिलाधिकारी के यहां आवेदन करना होगा और इसकी जानकारी प्रशासन को देनी होगी।
हाईकोर्ट ने योगी सरकार से मांगा विस्तृत जवाब
हाईकोर्ट में इस मामले की सुनवाई के दौरान सरकार ने भी अपना पक्ष रखते हुए कहा कि प्रदेश में कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए यह अध्यादेश जरूरी हो गया था। सरकार की तरफ से यह भी कहा गया है कि यूपी में धर्मांतरण के बढ़ते मामलों को देखते हुए कानून व्यवस्था की समस्या पैदा हो रही थी इसलिए अध्यादेश लाया गया। सरकार ने 24 नवंबर को विवाह के लिए जबरन या झूठ बोलकर धर्म परिवर्तन के मामलों से निपटने के लिए यह अध्यादेश लागू किया था, जिसके अंतर्गत किसी भी दोषी व्यक्ति को 10 साल तक की कैद हो सकती है। 28 नवंबर को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने इस अध्यादेश को मंजूरी दे दी थी। बाद में इसे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और अब कोर्ट ने योगी सरकार से इस मामले पर विस्तृत जवाब देने को कहा है।