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यूपी में इस हिन्दू विधायक के घर से निकलती है ताजिया , सौ बर्षों से हजरत इमाम हुसैन याद में मनाते है मुहर्रम

-मुहर्रम यानी गमे हुसैन के एहतराम का महिना -जिसकी दस तारीख को इमाम हुसैन जालिम क्रूर बादशाह यजीद की फ़ौज से लड़ते हुए कर्बला के मैदान में शहीद हुए

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Hindu MLA family participate in moharram, tazia julus start at home

यूपी में इस हिन्दू विधायक के घर से निकलती है ताजिया , सौ बर्षों से हजरत इमाम हुसैन याद में मनाते है मुहर्रम

प्रसून पाण्डेय

प्रयागराज। देश भर में जहां संप्रदायों को लेकर विवाद सुर्खियों में रहता है। वही संगम नगरी का एक हिंदू राजनीतिक परिवार गंगा -जमुनी तहजीब की मिसाल कायम कर रहा है। ये परिवार सिर्फ एक परम्परा का वाहक ही नही है। बल्कि ये हिंदुस्तान की महानता को भी दर्शाता है। ये समाज की फराखदिली को बताता है , इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक़ मुहर्रम का महिना कहा जाता है। मुहर्रम यानी गमे हुसैन के एहतराम का महिना है। जिसकी दस तारीख को इमाम हुसैन जालिम क्रूर बादशाह यजीद की फ़ौज से लड़ते हुए कर्बला के मैदान में शहीद हुए थे। इस्लाम की तारीख ये वाकया जुल्म और ना इंसाफी के खिलाफ एक एह्तेज़ाज़ के एलामत बन गया। जिसे आज हिन्दू मुसलमान सब मना रहे है। इस परिवार में तीसरी पीढ़ी इमाम हुसैन की कुर्बानी का मातम मुहर्रम मनाते आ रहे है। इस परिवार में ताजिया निकाला जाता है, फतेहा पढ़ते हैं पूरे समाज के लिए भंडारा चलाया जाता है। ये परिवार सिर्फ ताजिया उठाता ही नहीं बल्कि परिवार भर के लोग मिलकर इसे बनाने का भी काम करते है है। जिसमें गांव के अन्य हिंदू परिवार के लोग भीशामिल होते है उनकी मदद करते हैं।


पूर्व विधायक का है परिवार
जिले के गंगापार के उतरांव थाना अंतर्गत यह हिन्दू राजनीतिक परिवार पिछले सौ बरस से धार्मिक सामाजिक सदभाव का संदेश दे रहा है। ये परिवार है पूर्व विधायक जंग बहादुर पटेल का। जंग बहादुर पटेल जिले के सोरांव विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के दो बार विधायक रहे है। जंग बहादुर पटेल की मृत्यु हो गई उसके बाद से उनके बेटे प्रमोद पटेल अपने पिता की राजनीतिक और सामाजिक विरासत बचाने का काम कर रहे हैं। इनका परिवार जिले के उतरांव क्षेत्र के महुआ कोठी सैदाबाद का रहने वाला है। पूर्व विधायक जंग बहादुर पटेल के बेटे प्रमोद सिंह पटेल अपने पुरखों की विरासत को संभाले हुए हैं हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी मोहर्रम की 10 वी तारीख पर ताज़िया निकाल रहे हैं। प्रमोद पटेल बताते है की उनका परिवार पूरे माह भर लगातार मेहनत करके ताज़िया को बनाते है।

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तीन पीढ़ियों से उठ रही ताजिया
प्रमोद पटेल ने बताया कि वह अपने बचपन से अपने बाबा और अपने पिता के साथ ताजिया बनवाने का काम करते आए है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से मुस्लिम परिवारों में मुहर्रम मनाई जाती है उसी तरह से हम भी मुहर्रम मनाते हैं। हमारे यहां दिवाली होली और नवरात्रि की तरह मोहर्रम में ताजिए के जुलूस को निकालने की तैयारी होती है। कहा कि ताजिया बनाने में और इस पूरे कार्यक्रम के आयोजन में वह अपनी पूरी क्षमता के अनुसार खर्च करते हैं, इस काम में गांव के अन्य लोग भी उनकी मदद करते हैं। बड़ी बात यह है कि मदद करने वालों में ज्यादातर लोग हिंदू परिवार के ही है।

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हजरत इमाम हुसैन ने इंसानियत को बचाने के लिए दी कुर्बानी

प्रमोद पटेल ने बताया कि उनके बाबा स्वर्गीय प्रताप बहादुर सिंह 38 मौजे के जमींदार थे। उन्होंने हिन्दू मुस्लिम एकता को कायम रखने के लिए ताज़िया उठाने की परंपरा सन 1920 में शरू की उनके स्वर्गवास हो जाने के बाद सोरांव विधान सभा से दो बार विधायक रहे उनके पिता स्वर्गीय जंग बहादुर सिंह पटेल ने परम्परा कायम रखी। सन 1996 में उनके देहांत के बाद उनके बेटे पूर्व सांसद प्रत्याशी प्रमोद सिंह पटेल ने मोहर्रम में ताज़िया उठाने की इस परंपरा को आगे बढ़ाने का जारी रखा है। कहा की ने भर पहले महुआ कोठी स्थित बालिका विद्यालय में ताज़िया को बनाने का काम चल रहा है। अतिम रूप देने के लिए प्रमोद कारीगरों के साथ रात दिन मेहनत कर पूरा किया। प्रमोद सिंह पटेल का कहना है कि कर्बला में हजरत इमाम हुसैन ने इंसानियत को बचाने के लिए अपने 71 साथियों के साथ खुद भी शहीद हो गए थे उन्ही के नक्से कदम पर गांधी जी ने सिर्फ 72 लोगो के साथ डंडी यात्रा निकालकर हिंदुस्तान पर अपनी जीत दर्ज कराई थी।

आखिरी साँस तक मोहर्रम की ताजिया यूं ही उठाते रहेंगे
प्रमोद पटेल ने कहा कि इमाम हुसैन ने अपनी आन और उम्मत के लिए कुर्बानी दी। उन्होंने अपने समय में समाज और देश को मनहूसियत से बचाने के लिए अपने लोगों को जिंदा रखने के लिए अपनी कौम के हिफाजत के लिए इंसानियत के लिए कुर्बानी दी थी। हम भी चाहते हैं कि समाज में इंसानियत वापस लौटे हर धर्म का सम्मान हो अमन चैन कायम हो । हिंदू मुस्लिम दोनों समुदाय एक दूसरे के पूरक हैं । हम धार्मिक ही नहीं सामाजिक रीति.रिवाजों को एक साथ मनाएं । इस संदेश के साथ हम इस काम को कर रहे हैं। कहा की जीवन की आखिरी सांस रहेगी मोहर्रम का ताजिया यूं ही उठाते रहेंगे। उनके बाद उनका परिवार इसे निभाए यह परंपरा वह अपने बच्चों में डाल रहे है।