यह फैसला न्यायमूर्ति अरूण टण्डन तथा न्यायमूर्ति राजीव जोशी की खण्डपीठ ने बरेली की श्रीमती अर्से जहां की प्रथम अपील को मंजूर करते हुए दिया है। मालूम हो कि परिवार न्यायालय बरेली के प्रमुख न्यायाधीश ने अपीलार्थी अर्से जहां व उसके पति मोहम्मद फारूर उर्फ फारूक खान के बीच तलाक मंजूर कर लिया था। जिसे अपील में चुनौती दी गयी थी। कोर्ट ने कहा कि आमतौर पर अपील पर मूल दस्तावेज तलब कर ली जाती है।
किन्तु प्रश्नगत मामले में यह अर्थहीन प्रक्रिया होगी। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दे दिया है जो अपीलार्थी के पक्ष में है। मोहम्मद फारूर व अर्से जहां के बीच 24 अक्टूबर 2009 को निकाह हुआ। दो लाख मेहर तय हुई, किन्तु शादी की पहली रात को ही अपीलार्थी ने मेहर की रकम माफ कर दिया। पति भारतीय सेना में है। जब वह ड्यूटी पर था तो पत्नी ने दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए उसके व परिवार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करा दी।
पति ने विवाह प्रति स्थापन वाद दायर किया। पत्नी के साथ रहने से इंकार के कारण वाद खारिज हो गया। पति ने 17 अगस्त 2011 को दोग गवाहों की मौजूदगी में ट्रिपल तलाक दे दिया, 19 अगस्त 2011 को एक दैनिक समाचार पत्र में छपवाते हुए पंजीकष्त डाक से पत्नी को भेज भी दिया। साथ ही फतवा भी जारी करा लिया। पत्नी का कहना है कि मेहर माफ करने का नियम नहीं है। पति उसके साथ मारपीट करता है। जिस पर केस दर्ज हुआ। परिवार न्यायालय ने तलाक की डिग्री दे दी। जिसे हाईकोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के ट्रिपल तलाक को अवैध घोषित करने के फैसले के आधार पर रद्द कर दिया है।
by Prasoon Pandey