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जानते हैं सरिस्का में हैं कितनी तरह की चिडि़या

सरिस्का बाघ, बघेरों का ही नहीं, ढाई सौ तरह के पक्षियों का भी बसेरा है। सरिस्का बाघ परियोजना में साल भर ढाई सौ तरह की चिडि़या रहती हैं। वहीं सर्द मौसम में 65- 70 तरह के पक्षी लंबी दूरी तय कर सरिस्का पहुंचते हैं।

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अलवर

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Prem Pathak

Jan 04, 2024

जानते हैं सरिस्का में हैं कितनी तरह की चिडि़या

जानते हैं सरिस्का में हैं कितनी तरह की चिडि़या

सरिस्का टाइगर रिजर्व बाघ, बघेरे और भालुओं का ही नहीं, बल्कि करीब ढाई सौ तरह के पक्षियों का भी बसेरा है। यहां 100 प्रकार की प्रजाति के छोटे प्रवासी हैं। इनमें एंटल वाइस चिड़िया सबसे छोटा पक्षी है। वहीं सर्द मौसम में 65- 70 प्रकार के देशी व विदेशी पक्षी हजारों किलोमीटर की दूरी पार कर सरिस्का में डेरा जमाते हैँ।

सरिस्का में देशी- विदेशी पक्षियों की चहल पहल और पर्यटकों को आकर्षित करती है। सरिस्का में अनेक स्थानों पर ये परिंदे दिखाई पड़ते हैं। लेकिन यहां गिद्ध प्रजाति विलुप्त होने के कारण प्राय: कम मात्रा में दिखाई देती है। जैव विविधता बनाए रखने में पक्षियों का अहम रोल होता है।

दुलर्भ पक्षी भी पाए जाते हैं सरिस्का में

सरिस्का में दुर्लभ प्रजाति के अनेक पक्षी पाए जाते हैं। इनमें पेडेड इसपर फाउल, क्रिस्टिड सरपेट ईगल दुर्लभ पक्षी शामिल हैं। इनमें पेटेड इसपर फाउल जंगली मुर्गी प्रजाति की है, यह बाला किला जंगल में दिखाई देती है। वहीं क्रिस्टिड सरपेट ईगल भी विलुप्त प्रजाति का पक्षी है। सरिस्का में इनकी संख्या करीब 20 है। ये पक्षी सांपों का शिकार करते हैं, कभी-कभी छोटे बंदरों (बच्चों) का भी शिकार कर लेते हैं। पांडुपोल क्षेत्र में ब्राउन फिश आउल भी पाया है, यह लगभग 2 फीट साइज का होता है और दुर्लभ जीव माना जाता है। वहीं इंडियन ईगल आउल, डस्की ईगल आउल भी सरिस्का में पाए जाते हैं। ये सभी विलुप्त प्रजाति के पक्षी हैं। ये अधिकतर पानी की झीलों के समीप मिलते हैं।

सरिस्का में 65-70 प्रजाति के पक्षी आते हैं सर्दी में

बर्ड विशेषज्ञ निशांत सिसोदिया का कहना है कि सरिस्का टाइगर रिजर्व लगभग ढाई सौ प्रजाति पक्षियों का भी घर है। सर्दियों में विदेश से आने वाले जलचर पक्षी हैं, यहां के जलाशयों पर निर्भर है। सरिस्का में हर बार 65 से 70 तरह के पक्षी हर बार सर्दी में आते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग का पड़ रहा असर

ग्लोबल वार्मिंग का सर्द मौसम में विदेशों से आने वाले पक्षियों पर असर पड़ रहा है। जलवायु व अतिक्रमण के चलते मानव निर्मित झील जयसमंद बांध अब वजूद खोता जा रहा है। करीब 20 वर्ष पहले प्रवासी पक्षी यहां भी आते थे और झीलों के किनारे अपना घौंसला बनाकर रहते थे। ऐसे पक्षी वेटलैंडस झील के दलदल क्षेत्र में घोसला बनाकर रहते थे। बदलते युग में झील के किनारों पर अब अवैध निर्माण व अतिक्रमण बड़ी समस्या बन गई है।

जल राशि घटने से अन्य स्थानों पर जा रहे पक्षी

जलवायु परिवर्तन के कारण बारिश का समय पर नहीं आना तथा कम बरसात होने के कारण अलवर जिले के बांधों में पानी की मात्रा कम हुई है, इसका असर यह हुआ कि सर्द मौसम में सरिस्का आने वाले पक्षी अब अब उदयपुर और अन्य जगहों पर चल जाते हैं। इसका कारण है कि वहां झीलों में पानी पूरी मात्रा मिलता है।