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प्रदेश के सबसे बड़े और प्रसिद्ध आयोजनों में शामिल है बाबा भर्तृहरि का मेला, लाखों श्रद्धालु और पर्यटक लेते हैं भाग

जन आस्था का केन्द्र बाबा भर्तृहरि धाम। 3 दिवसीय मेला भरेगा 9 से 11 तक, मुख्य मेला भाद्रपद शुक्लपक्ष अष्टमी को।

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अलवर. जिले में जन-जन की आस्था के केंद्र लोक देवता बाबा भर्तृहरि बाबा कस्बे थानागाजी से करीब 9 किलोमीटर दूर सरिस्का नेशनल पार्क में है, जो सबसे प्राचीन पवित्र स्थलों में से एक है। भर्तृहरि धाम का मंदिर सम्प्रदाय और योगियों के लिए काफी महत्व रखता हैं।

मंदिर पारंपरिक राजस्थानी शैली में बनाया गया हैं, यहां पर भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भर्तृहरि बाबा का मेला लगता है। अभी बाबा भर्तृहरि का 3 दिवसीय मेला इस बार 9 से 11 सितंबर तक भरेगा। बाबा भर्तृहरि का मेला 11 सितंबर भाद्रपद शुक्लपक्ष अष्टमी को मुख्य लक्खी मेला है। यह मेला राजस्थान के सबसे बड़े और प्रसिद्ध मेलों में से एक है। इस मेले में लाखों श्रद्धालु और पर्यटक भाग लेते हैं।भर्तृहरि मंदिर तीन दिशाओं से पहाड़ियों से घिरा होने के कारण श्रदालुओं के लिए और अधिक लोकप्रिय बना हुआ है। बाबा भर्तृहरि की समाधि के पीछे पवित्र गंगा अनवरत बहती रहती है। पहाड़ियों पर झरने के साथ स्थित भर्तृहरि मंदिर, मन को शांत करने के एक अच्छा स्थान है।

भर्तृहरि धर्म और नीति शास्त्र के ज्ञाता थे

महाराजा भर्तृहरि के पिता महाराज गंधर्वसेन थे। गंधर्वसेन के बाद उज्जैन का राजपाठ भर्तृहरि को प्राप्त हुआ। राजा भर्तृहरि धर्म और नीतिशास्त्र के ज्ञाता थे। प्रचलित कथाओं के अनुसार भर्तृहरि के दो पत्नियां थीं, लेकिन फिर भी उन्होंने तीसरा विवाह पिंगला से किया था। पिंगला बहुत सुंदर थीं। उनके शासन काल में गुरु गोरखनाथ शिष्यों के साथ भ्रमण करते हुए भर्तृहरि के दरबार में पहुंचे। भर्तृहरि ने उनका भव्य स्वागत और अपार सेवा की। राजा की सेवा से गुरु गोरखनाथ अति प्रसन्न हुए और उन्होंने राजा को अमरफल देकर बताया कि जो इसे खा लेगा, वह कभी बूढ़ा, रोगी नहीं होगा, हमेशा जवान व सुन्दर रहेगा। इसी फल से राजा को अपनी रानी पिंगला की ओर से प्रेम में दिए जा रहे धोखे का पता चला। पत्नी के धोखे से भर्तृहरि के मन में वैराग्य जाग गया और वे अपना संपूर्ण राज्य अपने भाई विक्रमादित्य को सौंपकर गुफा में 12 वर्षों तक तपस्या की।

वैराग्य, श्रृंगार शतक और नीति शतक नामक काव्य भी लिखे

उन्होंने वैराग्य पर 100 श्लोक लिखे, जो कि वैराग्य शतक के नाम से प्रसिद्ध हैं। उससे पहले अपने शासनकाल में वे श्रृंगार शतक और नीति शतक नामक दो संस्कृत काव्य लिख चुके थे। वहां से गुरु गोरक्षनाथ के आदेश पर बाबा भर्तृहरि ने सरिस्का की वादियों में जहां वर्तमान मन्दिर है, वहां बरसों तपस्या की। जहां आज भी बाबा का धूना अनवरत चलता रहता है। बाबा भर्तृहरि का मेला प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को भरता है। भर्तृहरि धाम मंदिर में सुबह 6 से देर शाम तक दर्शन कर सकते हैं। भर्तृहरि बाबा का मंदिर सुबह 6 बजे से ही भक्तों, श्रद्धालुओं व पर्यटकों के लिए खुला रहता है। भर्तृहरि मंदिर में तीर्थ यात्रियों का प्रवेश बिल्कुल फ्री है। यहां पर्यटकों को मंदिर में घूमने के लिए किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं देना पड़ता है।