
अलवर के इस कद्दावर नेता की पहचान थी राजस्थान सरकार, फोन पर कहते, 'मैं राजस्थान सरकार बोल रहा हूं', सुनकर हिल जाता था प्रशासन
धर्मेन्द्र यादव की रिपोर्ट
अलवर. मैं राजस्थान सरकार बोल रहा हूं। कभी यह अलवर की राजनीति के दिग्गज नेता घासीराम यादव का तकिया कलाम था। विधायक के रूप में 1952 से शुरू हुआ सफर 1997 तक आते-आते तो यह तकियाकलाम पूरे प्रदेश में प्रसिद्ध हो गया था। चाहे किसी भी सरकार का मुख्यमंत्री हो। अलवर जिले की राजनीति के दिग्गत नेता घासीराम यादव कुछ इसी अंदाज में बोला करते थे। आज भी पुराने लोग मैं राजस्थान सरकार बोल रहा हूं के संबोधन से ही समझ जाते हैं कि अलवर के दिग्गज नेता घासीराम यादव की बात हो रही है। एक दौर में उनसे बड़ा नाम अलवर जिले की राजनीति में दूसरा नहीं था।
रागणी गाते थे
घासीराम खुद मटका बजा रागणी गाते थे। चाय पीने का शौक रहा। कद काठी के अच्छे नेता को दूर से ही पहचान लिया जाता था। फोन पर अपनी बात की शुरूआत यहीं से करते थे कि मैं राजस्थान सरकार बोल रहा हूं। जब कभी मुख्यमंत्री से बात करनी पड़ती तो भी उनका लहजा बदलता नहीं था।
सात बार विधायक, मंत्री व सांसद बने
नायब तहसीलदार की नौकरी छोड़ 1952 के चुनाव में मुण्डावर विधानसभा क्षेत्र से निर्विरोध चुनाव जीते। मुण्डावर के भुनगड़ा अहीर निवासी घासीराम यादव 1957 में भी मुण्डावर से जीत दर्ज की। फिर 1962 में उनको मुण्डावर की बजाय बहरोड़ विधानसभा से टिकट दिया। वहां भी जीत गए। लगातार तीन बार विधायक चुने गए। 1967 के चुनाव ेमें वे बहरोड़ में अमीलाल से हार गए। इसके बाद वापस 1972 में बहरोड़ से जीत गए। 1977 में वापस मुण्डावर से चुनाव लड़ा। हार गए। फिर 1980 में मुण्डावर से विधायक बन गए। 1985 में उनका टिकट कट गया। जबकि उस समय वे मंत्री थे। लेकिन 1990 में वापस विधायक चुने गए। इसके बाद 1993 में भी विधायक बने। आखिरी बार 1997 में वे सांसद का चुनाव जीत कर लोकसभा पहुंचे। इस तरह छह बार विधायक व एक बार सांसद चुने गए।
कार्यकर्ताओं में बांट देते थे चंदे का पैसा
घासीराम यादव की कई विशेषताएं हैं। कभी जेब के पैसे से चुनाव नहीं लड़ा। अहीरवाल क्षेत्र से खूब चंदा मिलता रहा। लेकिन चंदे का पैसा कभी खुद की जेब में भी नहीं रखा। चुनाव के बाद जो पैसा बचता था उसे कार्यकर्ताओं में ही बांट दिया करते थे। किसी की पेंट शर्ट फटी मिलती तो उसे नई ड्रेस बनवा देते तो किसी को अनाज के लिए पैसा दे दिया करते थे। वे किसी व्यक्ति के पक्ष में एक बार सामने आ गए तो फिर पीछे नहीं हटे। कभी रिक्शा में बैठने का मौका मिला तो जेब में हाथ दिया और जितना भी बड़ा नोट सामने आया वहीं रिक्शा चालक को थमा दिया करते थे। बकाया कभी वापस नहीं लिए।
समाजवादी पार्टी से हारे
घासीराम का तकियाकलाम उनकी बड़ी पहचान है। वे ऐसे नेता थे जिनको चुनाव लड़ाने के लिए अहिरवाल से खूब चंदा मिलता था। उनकी खासियत यह थी चुनाव लडऩे के बाद पैसा बच जाता तो कार्यकर्ताओं में बांट दिया करते थे। घासीराम ने पहले तीन चुनाव लगातार जीते। 1962 में समाजवादी पार्टी के विश्म्भरदयाल से कम वोट से जीते। 1967 के चुनाव में कांग्रेस के विरोध के स्वर उठने लगे थे। तभी 1967 में समाजवादी पार्टी के अमीलाल से घासीराम हार गए थे। लेकिन बाद में कई चुनाव इन्होंने वापस जीते।
एडवोकेट हरीशंकर गोयल, इतिहासविद् अलवर
Updated on:
18 Oct 2018 02:54 pm
Published on:
18 Oct 2018 11:07 am
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