राजस्थान में हनुमान जी का एक ऐसा मंदिर है, जहां पांडवों के वनवास के दौरान हनुमान जी ने महाबली भीम के अहंकार को चूर-चूर किया था। भीम ने यहीं रास्ता बनाने के लिए गदा से पहाड़ को तोड़ा था।
राजस्थान में हनुमान जी का एक ऐसा मंदिर है, जिसको पौराणिक महत्व के साथ देखा जाता है। अरावली की कंधराओं के मध्य स्थित प्राचीन पाण्डूपोल हनुमान मंदिर पर प्रतिवर्ष लक्खी मेले का आयोजन किया जाता है। पाण्डूपोल मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुडा है। पांडवों के वनवास के दौरान हनुमान जी ने अलवर की धरा पर महाबली भीम के अहंकार को चूर-चूर किया था। भीम ने यहीं रास्ता बनाने के लिए गदा से पहाड़ को तोड़ा था। आज भी पाण्डूपोल में इसके साक्ष्य मौजूद हैं।
बाबा पांडुपोल का इतिहास आज से 5000 वर्ष पूर्व में महाभारत काल से है। सरिस्का जंगल में स्थित इस मंदिर के स्थान पर ही बजरंग बलि ने महाबली भीम को पांडुपोल में दर्शन दिए थे। जहां भगवान हनुमान जी ने भीम के घमंड को तोड़ा था।
पांडवों के वनवास के दौरान भीम के जंगल से गुजरने के दौरान रास्ते में एक बुजुर्ग वानर अपनी पूंछ को रास्ते में फैलाए सोता मिला। भीम ने शक्ति व बल के अहंकार वश वानर को जगाया और बुजुर्ग वानर से रास्ते से पूंछ हटाने को कहा। वानर ने अपनी बुजुर्ग अवस्था का हवाला देकर भीम से कहा कि वह खुद ही उसकी पूंछ को हटाकर दूसरी जगह रख दे।
भीम ने बुजुर्ग वानर की पूछ को हटाने के लिए उठाने का प्रयास किया, लेकिन पूंछ को हिला तक नहीं पाया। यह देख भीम ने बुजुर्ग वानर को नमन किया और अपना वास्तविक रूप धारण करने का आग्रह किया। हनुमान के अपने वास्तविक रूप में आने पर भीम को गलती का अहसास हुआ। तभी से इस स्थल पर बनी शिला प्राकृतिक रूप में हनुमान की लेटी प्रतिमा के रूप में पूजी जाने लगी।
मान्यता है कि जब पांडव अपनी पांचाली के साथ 12 वर्ष का वनवास काट रहे थे। उस समय कुछ दिनों के लिए पांडव इस वन में रुके थे। जब पांडव यहां से आगे बढ़ने के लिए तैयार हुए तो आगे का रास्ता पहाड़ों से बंद था। तब भीम ने यहां पहाड़ पर अपनी गदा से प्रहार किया और वहां से आगे का रास्ता बना।