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एनसीआर ने किया निराश, अब पाबंदियों से बाहर आने की आस

नसीआर प्लानिंग बोर्ड की ओर से एक साल पहले प्रकाशित ड्राफ्ट के तहत दिल्ली के राजघाट से 100 किलोमीटर की दूरी का क्षेत्र ही एनसीआर में रहेगा। इस ड्राफ्ट का अंतिम प्रकाशन नहीं करने से अलवर के एनसीआर से मुक्त होेने में रोड़ा आ रहा है। इस ड्राफ्ट के इसी साल लागू होने की संभावना थी। एनसीआर से अलवर जिले को फायदा कम नुकसान अधिक हुआ है।

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एनसीआर ने किया निराश, अब पाबंदियों से बाहर आने की आस

एनसीआर ने किया निराश, अब पाबंदियों से बाहर आने की आस

एनसीआर ने किया निराश, अब पाबंदियों से बाहर आने की आस
-एनसीआर से बाहर होने का इंतजार

-नए औद्योगिक विकास की रुकी रफ्तारअलवर.

एनसीआर प्लानिंग बोर्ड की ओर से एक साल पहले प्रकाशित ड्राफ्ट के तहत दिल्ली के राजघाट से 100 किलोमीटर की दूरी का क्षेत्र ही एनसीआर में रहेगा। इस ड्राफ्ट का अंतिम प्रकाशन नहीं करने से अलवर के एनसीआर से मुक्त होेने में रोड़ा आ रहा है। इस ड्राफ्ट के इसी साल लागू होने की संभावना थी। एनसीआर से अलवर जिले को फायदा कम नुकसान अधिक हुआ है।वर्ष 1986 में एनसीआर का गठन किया गया। इसमें राजस्थान के अलवर, हरियाणा के गुड़गांव, पलवल, फरीदाबाद, रेवाड़ी, उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्ध नगर, गाजियाबाद, मेरठ जिलों को शामिल किया गया था। भविष्य की संभावनाओं को देखते हुए दिल्ली पर बढ़ते जनसंख्या के दवाब को कम करने के लिए अलवर जैसे छोटे शहर में मूलभूत सुविधाओं का विकास करना था। दिल्ली से कई बड़े कार्यालयों को अलवर में लाना था लेकिन ऐसा नहीं हो सका।

एनसीआर बोर्ड से ऋण लेकर विकास कराने में अलवर और भिवाड़ी यूआईटी ने रुचि नहीं ली। यूआईटी यह कहती रही कि एनसीआर का ब्याज बैंकों से भी अधिक है जिसके कारण हम उनसे ऋण नहीं लेते हैं।औद्योगिकरण की चाल रुकी-

एनसीआर के कारण अलवर के औद्योगिक विकास की गति रुक ग्ई है। अलवर में नए पांच औद्योगिक क्षेत्र विकसित होने थे जो एनसीआर बोर्ड से एनओसी नहीं मिलने के कारण अभी तक अटके हैं। इस मामले में राज्य की उद्योग मंत्री शकुंतला रावत दिल्ली एनसीआर आफिस तक गई लेकिन एनओसी नहीं आई।प्रदूषण का फंडा-

अलवर जिले के एनसीआर में शामिल होेने के कारण यहां प्रदूषण का फंडा रहता है। प्रदूषण के कारण जनरेटर सेट बंद कर दिए जाते हैं तो कभी उत्पादन रोक दिया जाता है।डीजल और पेट्रोल महंगा-

अलवर के पड़ोसी राज्यों के शहरों में पेट्रोल और डीजल सस्ता है इसलिए अलवर क्षेत्र के पेट्रोल पंप संचालकों को नुकसान होता है। आस-पास से गुजरने वाले लोग अलवर को पार करने के बाद पेट्रोल भरवाते हैं ।एनसीआर ने 10 साल पुराने डीजल वाहनों और 15 साल पुराने पेट्रोल-वाहनों के प्रयोग पर रोक लगा दी है जिससे इसका नुकसान भी अलवर के लोगों को अधिक उठाना पड़ रहा है। अलवर में वाहनों के रजिस्ट्रेशन नहीं हो पा रहे हैं। अन्य जगहों की तुलना में अलवर में महंगे वाहन मिलते हैं। हमारे यहां नई तकनीक के वाहन मिलते हैं। इसके अलावा भी कई अन्य गतिविधियां एनसीआर के चलते अलवर में चलती है।

बीते साल अक्टूबर को ड्राफ्ट रीजनल प्लान 2041 को मंजूरी दी गई। इस प्लान की अंतिम अधिसूचना जारी होनी है। अलवर जिला प्रारम्भ से ही एनसीआर का में शामिल है। जिले के शेष हिस्से को 23 अगस्त 2004 को शामिल किया गया था। वहीं भरतपुर 1 अक्टूबर 2013 को एनसीआर में शामिल हुआ।

विकास की उम्मीद नहीं हो पाई पूरी

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल होने से अलवर जिले में विकास होने की उम्मीद थी। लेकिन दोनों जिलों में कोई बड़ी योजना नहीं आई। अलवर में एनसीआर योजना के तहत पेयजल और सड़कों का ही कार्य हो सका।

खजाना भरने के लिए अलवर और भरतपुर का इस्तेमाल

सरकार अलवर और भरतपुर जिले से अपना खजाना भरने के लिए एनसीआर के नियमों का सहारा लेती है, लेकिन लोगों को सुविधाएं देने के समय दोनों जिलों की अनदेखी की जाती है। एनसीआर का सबसे ज्यादा खमियाजा किसानों को जमीन अधिग्रहण मामलों में उठाना पड़ा है। किसानों को जमीन अधिग्रहण के बदले मुआवजे की बात आती है तो उन्हें दिल्ली या आसपास के शहरों की दर से मुआवजे का भुगतान करने के बजाए अलवर जिले के ग्रामीण परिवेश का हवाला देकर भुगतान किया जाता है।

एनसीआर की अनुमति के बाद विकसित होंगे

अलवर जिले में नए औद्योगिक क्षेत्र विकसित होने में एनसीआर की रुकावट आ रही है। एनसीआर से एनओसी मिलते ही इनमें काम शुरू हो जाएगा। इस समय यह फाइल एनसीआर बोर्ड के पास है।

-परेश सक्सेना, क्षेत्रीय प्रबंधक, रीको