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Pandupol Hanuman Temple : यहां है दुनिया का एकमात्र मंदिर, जहां लेटे हुए हनुमान की होती है पूजा, पांडवों से जुड़ा है इसका इतिहास

pandupol temple Rajasthan : अलवर के सरिस्का कोर एरिया में स्थित पांडुपोल हनुमान मंदिर अपनी खास पहचान के लिए दुनिया में प्रसिद्ध है। कहा जाता है कि यहीं हनुमान जी ने भीम का घंमड तोड़ा था।

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अलवर

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Alfiya Khan

Sep 09, 2024

Pandupol Hanuman Ji temple

अलवर। पांडुपोल हनुमान जी भारत का ऐसा मंदिर है जहां पर हनुमान जी की लेटी हुई प्रतिमा विराजमान है। किवदंती है कि जिस स्थान पर यह मंदिर बना हुआ है वहां पर हनुमान जी ने पांडु पुत्र भीम का घमंड तोड़ा था।

दरअसल, महाभारत काल की एक घटना के अनुसार द्रोपदी अपनी नियमित दिनचर्या के अनुसार इसी घाटी के नीचे की ओर नाले के जलाशय पर स्नान करने गई थी। एक दिन स्नान करते समय नाले में ऊपर से जल में बहता हुआ एक सुन्दर पुष्प आया द्रोपदी ने उस पुष्प को प्राप्त कर बड़ी प्रसन्नता व्यक्त करते हुए उसे अपने कानों के कुण्डलों में धारण करने की सोची।

स्नान के बाद द्रोपदी ने महाबली भीम को वह पुष्प लाने को कहा तो महाबली भीम पुष्प की खोज करता हुआ जलधारा की ओर बढ़ने लगा। भीम की परीक्षा लेने के लिए हनुमान जी वानर बनकर रास्ते में लेट गए। जब भीम यहां से गुजर रहा था तो उन्होंने लेटे हुए वानर को यहां से हटने के लिए कहा। लेकिन वो नहीं हटे वानर रूप हनुमान ने कहां कि मैं यहां से नहीं हट सकता, तुम चाहो तो मेरी पूंछ यहां से उठाकर रास्ते से हटा सकते हो।

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ऐसा कहने पर भीम ने उनकी पूंछ उठाने की बहुत कोशिश की, लेकिन वो बहुत प्रयास के बाद उसको हिला भी नहीं पाए। तब भीम ने पूछा कि आप कौन है अपना परिचय दिजिए। तब वानर रूप हनुमान ने अपना परिचय दिया। इसके बाद पांडवों ने इस स्थान पर हनुमान जी की पूजा अर्चना की। तब से इस स्थान पर लेटे हुए हनुमान जी का मंदिर बनाकर उसको पूजा जाने लगा।

धार्मिक पर्यटक स्थल के रूप में पहचान

अलवर में बहुत से धार्मिक पर्यटक स्थल है लेकिन अलवर शहर से करीब 55 किलोमीटर दूरी पर बना पांडूपोल भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र है। साल भर यहां भक्तों का मेला लगा रहता है। मंगलवार व शनिवार को यहां दूर दूर से भक्त दर्शनों के लिए आते हैं। जिला प्रशासन की ओर से मेले के अवसर पर प्रतिवर्ष राजकीय अवकाश घोषित किया जाता है।

इतिहास महाभारत काल से जुड़ा

यहमंदिर सरिस्का वन क्षेत्र में स्थित है। इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। बताया जाता है कि कौरव व पांडवों के युद्ध के दौरान पांडवों ने इस क्षेत्र में अज्ञातवास का समय बिताया था। पांडव जब अज्ञातवास काटने के लिए सरिस्का के वन क्षेत्र में आए तो कौरवों को इस बात का पता चल गया था कि पांडव इस जगह पर आए हुए हैं।

वो इन्हें खोजते हुए यहां तक आ गए। इनसे बचने के लिए पांडू पुत्र भीम ने पहाडी पर अपनी गदा से प्रहार किया तो पहाडी में आर पार बड़ा रास्ता बन गया। इस जगह को ही पांडुपोल के नाम से जाना जाता है। आज भी यहां पर बारिश के दौरान पानी आता है।

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