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शून्य डिग्री तापमान में भी खुले आसमान के नीचे एक कम्बल का सहारा

राजस्थान के अलवर मे तापमान शून्य डिग्री पर पहुंच गया है, वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो खुले आसमान के नीचे सो रहे है।

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अलवर

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Himanshu Sharma

Jan 07, 2018

ricksaw operator sleeping under open sky in this heavy winter

अलवर. परिवार के पेट की आग बुझाने के लिए सैकड़ों रिक्शा चालक और मजदूर सर्द रात से जंग लड़ रहे हैं। रात में रैन बसेरों के गेट नहीं खुलने और आईडी की अड़चनों के कारण उन्हें बर्फीली हवाओं के बीच रेलवे स्टेशन और बस स्टैण्ड के बाहर, फुटपाथ और चौराहों पर ठिठुरते हुए रात गुजारनी पड़ रही है। ताकि उन्हें दो जून की रोटी कमाने के लिए अगली सुबह काम-धंधा मिल सके। शरीर में शूल की तरह से चुभती सर्दी और शीतलहरों से बचाव के लिए उनके पास मात्र पतले से कम्बल की ढाल है।


प्रशासन का उनकी पीड़ा पर ध्यान नहीं है। शुक्रवार देर रात पत्रिका टीम ने शहर के रेलवे स्टेशन, बस स्टैण्ड, फुटपाथ, चौराहों और रैन बसेरों के हालात देखे। स्थिति बेहद पीड़ा और चिंताजनक थी। रात 11 बजे बिजलीघर चौराहे के समीप पेट्रोल पम्प के सामने बरामदे में कुछ लोग सो रहे थे। जैसे ही उनके पास पहुंचे तो कंपकंपाने की आवाज सुनाई दी।
आवाज देते ही दो लोग एक साथ बोले कौन है। उनमें से एक ने अपना नाम कैलाश बताया। उसने कहा कि वो पहाड़ला गांव का रहने वाला है। दोनों एक छोटी चादर में घुसे हुए थे। दोनों ने कहा कि वो मजदूरी करते हैं। रैन बसेरे में आधार कार्ड मांगते हैं, उनके पास नहीं है। उन्होंने कहा कि रातभर ऐसे ही जागना पड़ता है।


उनके पास में एक अन्य व्यक्ति सीमेंट के कटटे से बनी एक चादर को ओढकर सो रहा था। कुछ दूरी पर चार से पांच लोग सो रहे थे। उनमें से बांदीकुई निवासी मोहन ने बताया कि वो मजदूरी करता है। उसने एक कम्बल ओढ रखा था। उसने बताया कि वो कम्बल कुछ देर पहले ही कोई उसे ओढ़ाकर गया है। वो ऐसे ही रातभर बैठकर रात गुजारता है। वहां उन लोगों के कम्बल में श्वान भी सो रहे थे। लोगों ने कहा कि इनको सर्दी लगती है, इसलिए आकर सो जाते हैं। उन लोगों के पास खुद के ओढऩे के लिए कम्बल व रजाई है, लेकिन उनका दिल इतना बड़ा है कि वो श्वानों को भी सर्दी से बचाने में मदद कररहे हैं।


आग लग जाए तो नहीं है इंतजाम

खदाना मोहल्ले के रैन बसेरे में आग बुझाने के यंत्र लगे हुए हैं। उनकी रिफलिंग की तारीख दिसम्बर 2017 थी, जो निकल चुकी है। लेकिन किसी का उस तरफ कोई ध्यान नहीं है। ऐसे में अगर आग लगने की घटना हो जाती है तो कोई मदद नहीं मिल सकेगी।

रैन बसेरे के नहीं खुले गेट


सूचना केंद्र के बाहर बने रैन बसेरे पर रात 11.05 बजे पत्रिका टीम पहुंची। गेट अंदर से बंद था। कई बार गेट बजाए व आवाज दी गई। लेकिन किसी ने गेट नहीं खोला। जबकि कमरे की लाइट जली हुई थी।