ऊषा ने बताया कि घर की आर्थिक स्थिति कमजोर थी । पति के पास भी कोई खास काम नहीं है। एेसे में हर दिन घर में पैसों की तंगी चलती रहती थी । बच्चों की फीस भरने के लिए आए दिन उधार लेना पड़ता था। घर का खर्चा भी पूरा नहीं होता था। पढ़ी लिखी नहीं होने के कारण कोई अच्छा काम नहीं कर पा रही थी। इससे एक दिन महिला एवं बाल विकास विभाग की महिलाओं से बात हुई तो उन्होंने महिलाओं का समूह बनाने की बात कहीं। इसके बाद महिलाओं को जोडक़र एक समूह बनाया और सबको पापड़, मंगोडी, अचार, मुरब्बा बनाना सीखाया।
शुरुआत में बिक्री कम होती थी लेकिन अब अच्छा काम मिल रहा है। ऊषा ने बताया कि अपने बच्चों का पालन पोषण वह अच्छी तरह से कर पा रही हैं। अब समूह की १५ महिलाओं को रोजगार देकर उनको आत्मनिर्भर बना रही है। उनका बनाया निशा समूह विभाग की ओर से लगाए अमृता हाट बाजार, सरकारी मेलों के अलावा अन्य मेलों में हाथ से बनाए पापड़, मंगोडी, अचार मुरब्बे बेचता है। जिनसे अच्छी आय होती है। उषा ने बताया कि जिंदगी में कोई भी काम करने में मेहनत अवश्य करनी पड़ती है। साथ ही ऊषा कहती है कि किसी भी काम को करने की कोई खास उम्र नहीं होती है।