10 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

#woman’s day : पति, दो बेटे छोड़ गए साथ फिर भी नहीं हारी ‘चाय वाली दीदी’

पति की 2004 में हो गई थी हत्या, एक बेटे ने लगाई फांसी तो दूसरे की मलेरिया से मौत, दर-दर भटकी और अंत में गांधीनगर के एक युवा व्यवसायी ने की मदद

4 min read
Google source verification

image

Pranayraj rana

Mar 08, 2016

Sita Gupta

Sita Gupta

अंबिकापुर.
'चाय वाली दीदीÓ के संघर्ष की कहानी सुनकर आंखों में आंसू आ जाते हैं। पति की हत्या व दो बेटों को खोने के गम के बावजूद दीदी ने हिम्मत नहीं हारी। वह संघर्ष करती हुई अपने जीवन में नित नए आयाम गढ़ती चली जा रही है। अपनों के ठुकराने के बाद वह दो और बेटों का जीवन पटरी पर लाने अभी भी संघर्ष कर रही है।


बेटे पढ़-लिखकर अच्छी नौकरी में लग जाएं, यह सपना आंखों में संजोए वह अभी भी चाय बेचकर गुजारा कर रही है। 11 वर्षों के लंबे संघर्ष में उसने खुद का घर बना लिया है और बच्चों को भी अच्छी शिक्षा दिला रही है। बेटे धीरे-धीरे आगे बढ़ रहे है, उसे इस बात का संतोष भी है।


यह कहानी है मैनपाट के बिलाईढोढ़ी निवासी 44 वर्षीय सीता गुप्ता की। वर्तमान में वह गांधीनगर के तुर्रापानी में निवास कर रही है। साईं मंदिर मोड़ के समीप वह एक गुमटी में चाय बनाती है। आस-पास के लोग चाय की चुस्कियां लेने के लिए 'चाय वाली दीदीÓ के नाम से मशहूर सीता गुप्ता के पास खींचे चले आते हैं। जनवरी 2004 में उसके पति सूरज गुप्ता की गांव के कुछ लोगों ने हत्या कर लाश कुएं में डाल दी थी। यहीं से उसका संघर्ष भरा जीवन शुरू हुआ।


पति की मौत के बाद गांव में उसका जीना मुहाल हो गया था। पति के छोटे किराने की दुकान को चलाने देना गांव वालों का रास नहीं आया। पति के हत्यारे भी उसे तंग करने लगे थे। फिर वह अपने 4 बेटों लव 13 वर्ष, कुश 11 वर्ष, राजेश 9 वर्ष व विनोद 7 वर्ष को लेकर अपने जेठ-जेठानी के घर ग्राम कोतबा, जशपुर चली गई। लेकिन यहां एक महीने रहने के बाद खाने-पीने के लाले पड़ गए। इस बीच वह वहां के एक निजी स्कूल में प्यून की नौकरी मिली।


यहां स्कूल के प्राचार्य उसे अपने घर में भी काम करने कहते। मना करने पर उसे प्रताडि़त किया जाने लगा तथा नौकरी से निकाल दिया गया। दुखों का पहाड़ तो तब टूट पड़ा, जब पति की मौत के 6 महीने बाद ही उसके मझले बेटे ने फांसी लगा ली। उसके दुखों का अंत यहीं नहीं हुआ। एक बेटे की मौत का गम वह भुला भी नहीं पाई थी कि बड़ा बेटा मलेरिया की चपेट में आ गया। गरीबी से वह इस कदर लाचार थी कि चाहकर भी अपने बेटे का इलाज नहीं करा पाई।


दूसरों के रहमों-करम से चल रहे इलाज के बीच बड़े बेटे की भी मौत हो गई। अब वह पूरी तरह से टूट चुकी थी। बेटे राजेश व विनोद ही उसका सहारा बचे थे। बेटों को पालने उसने राइस मिल में मजदूरी शुरू की, यहां भी परेशानियों से उसका चोली-दामन का साथ रहा। अब उसके सामने पहाड़ सी जिंदगी पड़ी थी और दो बेटों की जिम्मेदारी। ऐसे समय में उसने हार नहीं मानी और जिंदगी से जंग लडऩा जारी रखा।


युवा व्यवसायी ने की मदद

जब अपनों से वह ठुकरा दी गई तो गांधीनगर के एक युवा व्यवसायी व वर्तमान में विद्युत विभाग में पदस्थ यतिंद्र गुप्ता ने उसकी मदद की। यंू तो सीता गुप्ता से उसकी मुलाकात पति की मौत के 2 महीने बाद ही हो गई थी। इस दौरान भी उन्होंने उसकी सहायता करने प्रशासन व पुलिस तक दौड़ लगाई थी। एक वर्ष बाद दोबारा जब वे सीता से मिले और बेटों के मौत की बात सुनी तो उनका दिल पसीज गया। उन्होंने उसकी हरसंभव मदद भी की।


वर्ष 2006 में अचानक ही सीता गुप्ता अपने दो बेटों के साथ गांधीनगर पहुंच गई। यहां यतिंद्र गुप्ता ने अपने खर्चे पर न केवल उसे किराए का मकान दिलाया, बल्कि उसके भोजन-पानी का भी इंतजाम कर दिया। इस संबंध में यतिंद्र गुप्ता ने बताया कि कुछ दिनों बाद उन्होंने सीता के लिए चाय दुकान खुलवा दी। सिलेंडर, चूल्हा सहित अन्य सामग्री उन्होंने खरीदकर दी तथा बनारस मार्ग पर साईं मंदिर के पास खुले आसमान के नीचे वह चाय बेचने लगी। यहां आसपास के लोगों ने भी उनको हाथों-हाथ ले लिया। सभी ने उनकी हर संभव मदद की।


दूसरे कराते थे बेटे का इलाज

चाय वाली दीदी बताती हैं कि बड़ा बेटा जब पीडि़त था तो उसके पास उसके इलाज के लिए भी पैसे नहीं थे। दूसरे उसके बेटे का इलाज कराते थे। इसी बीच उसका बेटा जिंदगी की जंग हार गया।


पहले दिन 32 रुपए हुई कमाई

जब सीता गुप्ता गांधीनगर पहुंची थी तो कपड़े के नाम पर दो साडिय़ां ही थीं। बेटों के कपड़े में ठीक से बटन तक नहीं थे। जब चाय दुकान खुली तो पहले दिन 32 रुपए कमाई हुई। शुरूआत के 10 दिन तक तो ऐसा ही चलता रहा, लेकिन धीरे-धीरे लोगों को जानकारी होने लगी और चाय दुकान चल निकली।


आज चाय वाली दीदी प्रतिदिन करीब 150 चाय बेच लेती है। वर्ष 2014 में उसने गांधीनगर के तुर्रापानी में जमीन खरीद ली और घर भी बनवा लिया। बेटों को वह अभी अच्छी शिक्षा दिला रही है। बड़ा बेटा बीकॉम द्वितीय वर्ष तथा छोटा बेटा मल्टीपरपज स्कूल में 10वीं कक्षा का छात्र है।

ये भी पढ़ें

image

भैया नहीं होते तो हमारा क्या होता

सीता गुप्ता के यह बताते हुए आंखों में आंसू आ जाते हैं कि यदि यतिंद्र भैया ने उनकी मदद न की होती तो पता नहीं आज उनका बचा-खुचा परिवार कहां होता। अपनों ने जब उन्हें ठुकरा दिया था, ऐसे में पराया होते भी उन्होंने हरसंभव सहायता की। सीता बताती हैं कि आज जो भी उनके पास है, सब यतिंद्र भैया की मेहरबानी है। चाय बेचकर वह रुपए भी बचा लेती हैं ताकि अपने बच्चों की शिक्षा पर खर्च कर सकें।


छोटा बेटा सैनिक तो बड़ा बनना चाहता है बैंककर्मी

संबंधित खबरें


चाय वाली दीदी के दोनों बेटे पढ़ाई में काफी मेधावी हैं। बड़ा बेटा राजेश बैंक में नौकरी करना चाहता है, जबकि छोटा बेटा विनोद आर्मी में जाकर देश की सेवा करना चाहता है। इसी हिसाब से उसने एनएसएस भी ज्वाइन किया है। उसका विज्ञान मॉडल भी प्रदेश स्तर पर चयनित हो चुका है।

@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@@

रामप्रवेश विश्वकर्मा, अंबिकापुर

ये भी पढ़ें

image