
महर्षि च्यवन मुनि की तपोस्थली के सरोवर में स्नान कर दूर होते हैं समस्त चर्म रोग
अमेठी. नेहरू गांधी परिवार के गढ़ के अलावा अमेठी ऐसे धामों की वजह से प्रसिद्ध है, जहां नवरात्रि में रोज मां के भक्तों की भीड़ जुटती है। अमेठी से 12 कि.मी. दूर संग्रामपुर क्षेत्र में स्थापित मां कालिकन भवानी धाम का अपना रोचक इतिहास है। इस धाम का वर्णन देवी भागवत व सुखसागर में किया गया है। महर्षि च्यवन मुनि की तपोस्थली के सरोवर में स्नान करके समस्त चर्म रोगों का विनाश होता है। नवरात्रि के दिनों में यहां लोगों का हुजूम देखते ही बनता है।
कुछ ऐसा है इतिहास
पुराण में वर्णित कथा के अनुसार एक बार अयोध्या नरेश सरियाद के एक ही पुत्री थी, जिसका नाम सुकन्या था। महर्षि च्यवन की तपोस्थली वन विहार के दौरान वह यहां के जंगल में आई थीं। उस समय महर्षि यहां पर तपस्या कर रहे थे, तप करते-करते महर्षि के शरीर पर दीमक लग गया। दीमक के बीच आंखें मणि की तरह चमक रही थी। सुकन्या आंखों को मणि समझकर दीमक को कांटे से निकालने का प्रयास करने लगी। इससे महर्षि की आंखें फूट गईं। इसके बाद राजा सरियाद के सैनिक व पशुओं में ज्वर फैल गया, एक साथ सैनिक व पशुओं में एक ही बीमारी होने पर राजा को दैवीय प्रकोप की आशंका हो गई।
सुकन्या ने अश्विनी कुमार की थी आराधना
राजा को सुकन्या ने बताया कि उससे यह अपराध हो गया है। राजा ने तपस्वी के पास पहुंचकर महर्षि के शरीर को साफ कराकर बाहर निकाला। शाप से बचने के लिए सुकन्या का विवाह महर्षि के साथ करके वापस चले गए। कालांतर में अश्विनी कुमार महर्षि की तपोस्थली पर आए। महर्षि को युवावस्था व उनकी ज्योति वापस करने की बात कही। अश्विनी कुमार ने कहा कि बदले में महर्षि को यज्ञ में हिस्सा व सोमपान करना होगा। वार्ता तय हो जाने पर अश्विनी कुमार ने तपोस्थली के पास बारह तालिका बनाई, जो अब सगरा का रूप में स्थापित है। सरोवर में कुमार ने औषधि डाल दी, महर्षि के साथ कुमार ने सरोवर में डुबकी लगाई। डुबकी लगाने के बाद बाहर निकलने पर दोनों एक रूप के निकले, जिससे सुकन्या विचलित हो गई। सुकन्या ने अश्विनी कुमार की आराधना की, तो वे देव लोक वापस चले गए। महर्षि की ज्योति वापस आने व युवा हो जाने पर सुकन्या व महर्षि एक-साथ प्रेम से रहने लगे।
ऐसे प्रकट हुईं थीं मां भगवती अष्टभुजी
महर्षि के अनुरोध पर अयोध्या नरेश ने सोमयज्ञ कराया, जिसमें अश्विनी कुमार को सोमपान कराए जाते देख कुपित इंद्र ने राजा को मारने के लिए वज्र उठा लिया। च्यवन ने स्तंभन मंत्र से इंद्र को जड़वत कर दिया। यज्ञ के बाद देवताओं ने निर्णय लिया कि अमृत की रक्षा कौन करेगा? देवताओं व महर्षि ने शक्ति का आह्वान किया तो मां भगवती अष्टभुजी के रूप में प्रकट हुईं। देवताओं व महर्षि के अनुनय पर भगवती अमृत की रक्षा के लिए तैयार हुई। अमृतकुंड पर शिला के रूप में स्थान ले लिया, इसके बाद देवता देव लोक चले गए और महर्षि व सुकन्या मथुरा चले गए।

Updated on:
13 Oct 2018 03:04 pm
Published on:
12 Oct 2018 07:29 pm
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