विश्व में अब तक का दूसरा मामला, राजकोट में इएनटी सर्जन ने की 30 साल के पुरुष की एंडोस्कोपिक सर्जरी राजेश भटनागर अहमदाबाद. राजकोट. भारत में पहली बार नाक के पर्दे (सेप्टम) में पाए गए दुर्लभ रक्तवाहिनी ट्यूमर का सफल ऑपरेशन किया गया है। बताया जाता है कि यह दुनिया में रिपोर्ट हुआ केवल दूसरा […]
राजेश भटनागर
अहमदाबाद. राजकोट. भारत में पहली बार नाक के पर्दे (सेप्टम) में पाए गए दुर्लभ रक्तवाहिनी ट्यूमर का सफल ऑपरेशन किया गया है। बताया जाता है कि यह दुनिया में रिपोर्ट हुआ केवल दूसरा मामला है। राजकोट के ईएनटी सर्जन डॉ. हिमांशु ठक्कर ने 30 वर्षीय मरीज की एंडोस्कोपिक सर्जरी कर यह सफलता हासिल की। इस उपलब्धि को इंडियन जर्नल ऑफ ओटोलैरिंगोलोजी-हेड एंड नेक सर्जरी (स्प्रिंगर नेचर) में प्रकाशित किया है।
राजकोट के मरीज चेतन पोपट (बदला नाम) पिछले दो महीनों से नाक से रुक-रुक कर खून आने और सांस लेने में कठिनाई जैसी समस्या से परेशान था। सामान्य दवाओं से राहत न मिलने पर उसने ईएनटी विशेषज्ञ से परामर्श लिया। एंडोस्कोपिक जांच में नाक के पर्दे पर रक्त वाहिनियों जैसा मांस दिखाई दिया, जिसने डॉक्टरों को भी चौंका दिया। सटीक निदान के लिए कॉन्ट्रास्ट युक्त सीटी स्कैन कराया गया। इस जांच ने स्पष्ट किया कि यह कोई सामान्य वृद्धि नहीं बल्कि एक दुर्लभ प्रकार का रक्तवाहिनी ट्यूमर है।
डॉ. ठक्कर ने बताया कि इस तरह के ट्यूमर को एनास्टोमोसिंग हेमांगीओमा के नाम से जाना जाता है, जो सामान्यत किडनी और जनन-मूत्र तंत्र में पाया जाता है। नाक के सेप्टम में इसका होना अत्यंत दुर्लभ है। यह ट्यूमर पतली दीवार वाली आपस में जुड़ी रक्त वाहिकाओं से बना होता है और सौम्य (गैर-घातक) प्रकृति का होता है।
सर्जरी के दौरान डॉक्टरों ने एंडोस्कोपिक तकनीक का इस्तेमाल किया। नाक के भीतर कैमरे और विशेष उपकरणों की मदद से यह ऑपरेशन किया। न्यूनतम रक्तस्राव के साथ ट्यूमर को सफलतापूर्वक हटाया। बायोप्सी रिपोर्ट में एनास्टोमोसिंग हेमांगीओमा की पुष्टि की। ऑपरेशन के बाद मरीज को सामान्य देखभाल की गई और वह तेजी से स्वस्थ हुआ। करीब 20 दिन पहले जब वह फॉलो-अप के लिए आया तो पूरी तरह ठीक पाया गया।
डॉ. ठक्कर ने कहा कि नाक में इस प्रकार का ट्यूमर अत्यंत दुर्लभ है और इसकी पहचान करना चुनौतीपूर्ण होता है। समय पर सही जांच और तकनीक का इस्तेमाल ही उपचार की कुंजी है। उन्होंने इसे भारतीय चिकित्सा जगत के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि बताया और कहा कि इस केस से भविष्य में ऐसे दुर्लभ मामलों की पहचान और इलाज में मदद मिलेगी।