फैशन के संग सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक भी
अजमेर. सावन में वातावरण हरा-भरा होने के साथ माहौल खुशनुमा रहता है। सावन में भोलेनाथ की पूजा- आराधना के साथ साज-शृंगार और लहरिया पहनने का भी महत्व है। लहरिया बिना तो सावन और तीज का त्योहार अधूरा माना जाता है।
शहर के नया बाजार, पुरानी मंडी सहित अन्य क्षेत्रों में दुकानों पर लहरिया की खरीद-फरोख्त शुरू हो गई है। तीज पर नव विवाहिताओं और सगाई पर सिंजारे में लहरिया की साड़ियां और सूट भेजे जाते हैं। लहरिया महज कपड़े पर उकेरा गया डिजाइन अथवा स्टाइल नहीं है। यह रंग-बिरंगी धारियां शगुन और सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक माने जाते हैं।
नया बाजार, पुरानी मंडी सहित विभिन्न क्षेत्रों में महिलाएं लहरिया की खरीद-फरोख्त में जुट गई हैं। इनमें बारीक लाइन का स्काई ब्लू, पिंक, हरा, पीला, सतरंगी और मिक्स लहरिया खरीदा जा रहा है। बाजारों में विभिन्न लहरियों में लाल और रानी कलर की मोटी लाइन वाले भी पहुंचे हैं। फैशन को देखते हुए मल्टी कलर लहरिया भी बिक्री के लिए आए हैं। साड़ी के अलावा कुर्ती, लॉन्ग सूट, स्कर्ट में भी लहरिया दिख रहा है।
सावन माह से सालभर के तीज-त्योहार की शुरुआत होती है। हरी-भरी धरती के संग रंग-बिरंगे परिधान खूब जमते हैं। त्योहारों के अलावा विभिन्न धार्मिक-सांस्कृतिक कार्यक्रमों में लहरिया पहना जाता है।