आर्थिक तंगी से जूझ रहे अलवर नगर निगम को कचरे से निकल रहा प्लास्टिक आर्थिक संबल दे सकता है। रोजाना कचरे से करीब 3 टन तक प्लास्टिक कचरा निकलता है।
आर्थिक तंगी से जूझ रहे अलवर नगर निगम को कचरे से निकल रहा प्लास्टिक आर्थिक संबल दे सकता है। रोजाना कचरे से करीब 3 टन तक प्लास्टिक कचरा निकलता है। निगम ने इसका कोई टेंडर नहीं कर रखा है, इस वजह से प्लास्टिक बीनने वाले लोग ही कचरे से प्लास्टिक को बीनकर ले जाते हैं। अगर निगम ही इस प्लास्टिक को बेचता है तो सालाना एक करोड़ रुपए से ज्यादा की कमाई हो सकती है।
कचरे से निकलने वाले प्लास्टिक का मोल कुछ कबाड़ियों ने समझा। कचरा बीनने वालों से ही रोजाना ये कबाड़ी प्लास्टिक खरीद रहे हैं। गौरतलब है कि रोजाना अलवर शहर से करीब 200 टन कचरा इकट्ठा हो रहा है।
इंदौर सहित कई शहरों में गीला व सूखा कचरा अलग लिया जा रहा है। मगर अलवर ही नहीं राजस्थान के ज्यादातर निकायों में अभी तक सेग्रीगेशन की कोई व्यवस्था नहीं है। निगम ने कई बार अलवर में ड्राइव चलाकर लोगों को गीले व सूखे कचरे के लिए समझाया भी है, लेकिन अभी तक सफलता नहीं मिल पाई है।
इंदौर में सफाई को लेकर चल रहा काम अलवर के लिए सीख हो सकता है। यहां सूखे कचरे में शामिल अनुपयोगी प्लास्टिक, कपड़ा, पेपर, आदि करीब 120 से 150 टन सामग्री प्रतिदिन सीमेंट फैक्ट्रियों को भेजा जाता है। साथ ही रोड निर्माण में भी इसका प्रयोग किया जा रहा है।
राजस्थान में सिंगल यूज प्लास्टिक को पूरी तक बैन किया हुआ है, लेकिन आज भी धड़ल्ले से इसका प्रयोग हो रहा है। बैन हुई वस्तुओं में थर्माकोल से बनी प्लेट, कप, गिलास, सिगरेट पैकेट की फिल्म, प्लास्टिक के झंडे, कटलरी जैसे कांटे, चम्मच, चाकू, पुआल, ट्रे, मिठाई के बक्सों पर लपेटी जाने वाली फिल्म, निमंत्रण कार्ड, गुब्बारे की छड़ें और आइसक्रीम पर लगने वाली स्टिक, क्रीम, कैंडी स्टिक और 100 माइक्रोन से कम के बैनर शामिल हैं। ये सभी कचरे में रोजाना आती है।