सिलीसेढ़ से अलवर आ रही दोनों नहरें शहर के लोगों की प्यास बुझाने में सहायक हो सकती हैं। इसके लिए प्रशासन को चूरू, बाड़मेर व बीकानेर की तर्ज पर काम करने की जरूरत है।
सिलीसेढ़ से अलवर आ रही दोनों नहरें शहर के लोगों की प्यास बुझाने में सहायक हो सकती हैं। इसके लिए प्रशासन को चूरू, बाड़मेर व बीकानेर की तर्ज पर काम करने की जरूरत है। पर्यावरण प्रेमी एवं टूरिज्म एंड वाइल्ड लाइफ सोसायटी ऑफ इंडिया के कोषाध्यक्ष विशंभर मोदी ने इस संबंध में केंद्रीय वन मंत्री भूपेंद्र यादव, राज्यमंत्री संजय शर्मा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली व जिला कलक्टर आर्तिका शुक्ला को पत्र लिखा है।
विशंभर मोदी ने पत्र में लिखा है कि 45 साल पहले राजस्थान के उत्तरी-पूर्वी जिलों चूरू, बाड़मेर, बीकानेर, श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़ आदि में पेयजल के लिए भाखड़ा बांध का पानी राजस्थान नहर योजना के जरिए इन क्षेत्रों में पहुंचा। वहां पानी की समस्या का समाधान हुआ। इसी तरह अलवर की दोनों नहरों का प्रयोग पेयजल संकट को दूर करने में किया जा सकता है।
सिलीसेढ़ के पानी को पूर्वी क्षेत्र में निचली नहर से व पश्चिमी क्षेत्र में ऊपरी नहर से पानी परिवहन कर अतिरिक्त संचयन के लिए भू जलाशय बनाकर और उस पानी को फिल्टर करके लोगों के काम लाया जा सकता है। पूर्वी क्षेत्र में मोती डूंगरी, आरआर कॉलेज के पास, पश्चिम में लाल डिग्गी, मिलिट्री क्षेत्र में जल संशोधन की प्रक्रिया प्रारंभ कर जलदाय विभाग की वितरण व्यवस्था के उपयोग लिया जा सकता है। यदि सिलीसेढ़ का पानी अपर्याप्त रहे, तो अतिरिक्त पानी जयसमंद से लिया जा सकता है। इससे पहले दोनों नहरों की मरमत करके इन्हें चालू करने की जरूरत है।