अशोकनगर

एमपी में यहां जमीनों पर बढ़ रहे कब्जे, प्रशासन के दरवाजे खटखटा रहे पीड़ित

land occupation: अशोकनगर में जमीन पर कब्जे के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं, जिससे पीड़ितों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि तहसील और विकासखंड स्तर पर उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही है।

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Mar 12, 2025

land occupation: मध्य प्रदेश के अशोकनगर जिले में जमीन पर कब्जे के मामले लगातार बढ़ते जा रहे हैं। कई मामलों में लोगों की निजी भूमि पर जबरन कब्जा कर लिया गया है, तो कुछ मामलों में बटाई पर ली गई जमीन लौटाने से इनकार किया जा रहा है। शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि तहसील और विकासखंड स्तर पर उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही, जिससे वे कलेक्ट्रेट में चक्कर लगाने को मजबूर हैं।

मंगलवार को कलेक्ट्रेट में जनसुनवाई के दौरान बड़ी संख्या में लोग अपनी शिकायतें लेकर पहुंचे। जनसुनवाई कक्ष के सामने लंबी कतार लग गई और कई घंटे तक लोगों की भीड़ बनी रही। इनमें अधिकांश मामले जमीन विवाद से जुड़े थे।

बटाई पर ली जमीन लौटाने से इनकार

सिजावट निवासी नीरज अहिरवार ने कलेक्टर से शिकायत की कि उनकी पांच बीघा (1.045 हेक्टेयर) पट्टे की भूमि और उनके पिता की 0.627 हेक्टेयर भूमि गांव के ही एक व्यक्ति ने बटाई पर ली थी। लेकिन अब वह पिछले 10 साल से उस पर कब्जा जमाए बैठा है और न तो जमीन लौटा रहा है, न ही फसल का बंटवारा कर रहा है। नीरज ने प्रशासन से जमीन वापस दिलाने की मांग की है।

जबरी कब्जा कर बनाए जा रहे मकान

टीटोर गांव निवासी गंगाराम आदिवासी का आरोप है कि उनकी जमीन (2.090 हेक्टेयर व 0.105 हेक्टेयर) पर गांव के ही कुछ लोग जबरन मकान बना रहे हैं। विरोध करने पर मारपीट और गाली-गलौच की जाती है। गंगाराम ने पटवारी पर भी पैसे मांगने का आरोप लगाया और बताया कि उनकी फाइल आठ माह से तहसीलदार के पास लंबित है, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही।

सरकारी और निजी जमीन पर कब्जा

पिपरई क्षेत्र के प्यासी गांव के भानु, राजन, मुलायम और मोहरसिंह ने शिकायत में बताया कि उनकी जमीन के अलावा गांव के एक व्यक्ति ने चरनोई की 70 बीघा सरकारी भूमि पर भी कब्जा कर लिया है। उन्होंने प्रशासन से तत्काल कार्रवाई की मांग की है।

तहसील स्तर पर नहीं हो रही कार्रवाई, कलेक्ट्रेट में बढ़ रही भीड़

शिकायतकर्ताओं का कहना है कि तहसील और विकासखंड कार्यालयों में अधिकारी अक्सर मौजूद नहीं रहते। कई बार वे कलेक्ट्रेट या बैठकों में व्यस्त होते हैं, जिससे शिकायतों पर सुनवाई नहीं हो पाती। जब अधिकारी मिलते भी हैं, तो कार्रवाई में देरी की जाती है। इस कारण लोग कलेक्ट्रेट पहुंचने को मजबूर हैं और जनसुनवाई में भीड़ बढ़ रही है।

Published on:
12 Mar 2025 08:28 am
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