Mahashivratri 2025 Date Muhurat : महाशिवरात्रि पर भगवान शिव की आराधना के लिए चार प्रहर की पूजा का विशेष विधान बताया गया है। ज्योतिषाचार्य पंडित सतीश चंद्र शास्त्री के अनुसार, यह पूजा सूर्यास्त से ऊषाकाल तक चलती है, जिसमें हर प्रहर का अपना महत्व होता है।
Mahashivratri 2025 :ज्योतिषाचार्य पंडित सतीश चंद्र शास्त्री बताते हैं कि महाशिवरात्रि Maha Shivratri पर चार प्रहर की पूजा का भी विशेष विधान है। इसमें नमक-चमक से पूजा का भी विधान है। शास्त्री बताते हैं कि महाशिवरात्रि Mahashivratri पर महादेव Lord Shiva की विशेष पूजा होती है। सम्पूर्ण रात्रि के चार प्रहरों में शिव पूजा की जाती है।
इसमें प्रथम प्रहर की पूजा सूर्यास्त Sunset के बाद होती है। इसके बाद द्वितीय प्रहर की पूजा होती है। आधी रात के बाद तृतीय प्रहर की पूजा की जाती है वहीं इसके बाद चतुर्थ प्रहर की पूजा होती है। चतुर्थ प्रहर की पूजा के बाद सूर्योदय Sunrise के बाद ऊषाकाल में भगवान शिव की आरती की जाती है। और क्या कुछ खास विधान बताए गए हैं
नमक चमक महारुद्राभिषेक एक अत्यंत प्रभावशाली और फलदायी अनुष्ठान है, जिसमें अन्य अभिषेकों की तुलना में सभी पूजन सामग्रियों की मात्रा 5 गुना अधिक रखी जाती है। इस कारण से, यह अभिषेक अन्य सभी से अधिक शक्तिशाली माना जाता है और इसका प्रभाव सर्वोच्च फलदायी होता है।
इस साल महाशिवरात्रि का पर्व 26 फरवरी 2025 को मनाया जाएगा।
चतुर्दशी तिथि प्रारंभ: 26 फरवरी को प्रातः 11:08 बजे
चतुर्दशी तिथि समाप्त: 27 फरवरी को प्रातः 8:54 बजे
शिव भक्त इस दिन पूरे विधि-विधान से भगवान शिव की पूजा करते हैं। खासकर रात्रि में चार प्रहर की पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है।
महाशिवरात्रि की पूजा दिन के साथ-साथ रात में भी की जाती है। रात्रि को चार पहरों में विभाजित कर हर प्रहर में विशेष पूजा करने से भक्तों को महादेव की कृपा प्राप्त होती है।
पहला प्रहर (शाम 6:43 - रात 9:47)
मंत्र: "ह्रीं ईशानाय नमः"
दूसरा प्रहर (रात 9:31 - मध्यरात्रि 12:51)
मंत्र: "ह्रीं अघोराय नमः"
तीसरा प्रहर (मध्यरात्रि 12:51 - भोर 3:55)
मंत्र: "ह्रीं वामदेवाय नमः"
चौथा प्रहर (भोर 3:55 - सुबह 6:59)
मंत्र: "ह्रीं सद्योजाताय नमः"
व्रत का पारण 27 फरवरी की सुबह 6:48 से 8:54 के बीच करना शुभ माना गया है।
भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए रुद्राभिषेक अति श्रेष्ठ माना गया है। शास्त्रों में उल्लेख मिलता है:
"कुर्यात् रूद्राभिषेकं च प्रीतये शूलपाणिनः",
अर्थात् भगवान शिव (शूलपाणि) की प्रसन्नता के लिए रुद्राभिषेक करना चाहिए।
गोस्वामी तुलसीदास जी भी कहते हैं:
"आसुतोष तुम्ह अवढर दानी। आरति हरहु दीन जनु जानी।।
जिसका अर्थ है कि भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होने वाले (आशुतोष) और बिना विलंब के दान देने वाले हैं।
वैवाहिक जीवन में सुख-समृद्धि: भगवान शिव और माता पार्वती का आशीर्वाद पाने के लिए इस दिन व्रत करना शुभ माना जाता है।
मनचाहा जीवनसाथी: कुंवारी कन्याएं इस दिन व्रत रखकर योग्य वर की प्राप्ति की कामना करती हैं।
कर्मों का शुद्धिकरण: शिव उपासना से सभी पाप नष्ट होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
- भगवान शिव का जल, दूध, शहद, दही और बेलपत्र से अभिषेक करें।
- रात्रि जागरण करें और चार पहरों में अलग-अलग मंत्रों के साथ शिवजी की पूजा करें।
- शिवलिंग पर बिल्वपत्र, धतूरा और आंकड़े के फूल चढ़ाएं।
- शिव पुराण और महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।