धर्म/ज्योतिष

Surya Uttarayan: आज से सूर्य हो रहे उत्तरायण, जानें कितनी लंबी होती है देवताओं की रात और देह त्याग के लिए भीष्म ने क्यों किया इंतजार

Surya Uttarayan: सूर्य नारायण मकर संक्रांति 2025 से ही दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाएंगे। क्या आपको मालूम है मकर संक्रांति, उत्तरायण, दक्षिणायन में क्या अंतर है और महाभारत के भीष्म ने देह त्याग के लिए सूर्य उत्तरायण का इंतजार क्यों किया, आइये जानते हैं ..

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Surya Uttarayan meaning: क्या है सूर्य का उत्तरायण होना

Surya Uttarayan meaning: ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नवग्रहों के राजा सूर्य हर महीने अपनी राशि बदलते हैं, इस तरह साल के 12 महीने में वो राशि चक्र की परिक्रमा पूरी कर लेते हैं। वहीं सूर्य जब जिस राशि में प्रवेश करते हैं, वह दिन उसी नाम की संक्रांति के रूप में जाना जाता है। 14 जनवरी 2025 को सुबह सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश कर रहे हैं, इससे यह दिन मकर संक्रांति के रूप में जाना जाएगा।

लेकिन साल में दो संक्रांति ऐसी होती हैं जब मौसम के साथ सूर्य की दिशा में बड़ा बदलाव महसूस किया जाता है। ये संक्रांति ग्रीष्म संक्रांति और शीत संक्रांति के नाम से जानी जाती है। यह चरण छह-छह महीने चलते हैं।

क्या है उत्तरायण (Sheet Sankranti Uttarayan)

शीत संक्रांति सूर्य की उत्तर की ओर गति का प्रतीक है यानी मकर रेखा से कर्क रेखा की ओर, यह चरण 22 दिसंबर से 21 जून के बीच होता है। हालांकि भारतीय ज्योतिष में इसकी शुरुआत का समय मकर संक्रांति माना जाता है, जब सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है। यह समय 14-15 जनवरी के आस पास होता है।

इसी को उत्तरायण कहा जाता है। इसे देवताओं के  दिन की शुरुआत माना जाता है। मान्यता है कि देवताओं का एक दिन मनुष्यों के दिन रात मिलाकर छह माह के बराबर होती है। इसलिए इस समय को बेहद शुभ माना जाता है और इस समय शुभ और मांगलिक कार्यों को करने पर तरजीह दी जाती है। इस चरण में दिन बड़े और रातें छोटी होती हैं। इस दिन से शुरू होने वाली अवधि शुभ और सकारात्मकता का प्रतीक मानी जाती है।

क्या है दक्षिणायन (Grishma Sankranti Dakshinayan)

दक्षिणायन को ग्रीष्म संक्रांति या कर्क संक्रांति भी कहा जाता है। यह चरण जून से शुरू होता है  और सूर्य के कर्क रेखा से मकर रेखा की ओर दक्षिण की ओर गति का संकेत करता है। यह समय 21 या 22 जून के आसपास शुरू होकर 22 दिसंबर तक चलता है। इसी को दक्षिणायन या देवताओं की रात के रूप में दर्शाया जाता है।

इस समय को नकारात्मकता से जोड़ा जाता है और शुभ काम से परहेज किया जाता है। इसमें सर्दी, शरद ऋतु और मानसून का शामिल होता है। इस चरण में दिन छोटे और रातें बड़ी होती हैं। भारतीय पंचांग के अनुसार कर्क संक्रांति 16 जुलाई 2025 को होगी। इस दिन देवशयनी एकादशी होती है, चातुर्मास और मानसून की शुरुआत होती है।

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है और व्रत रखा जाता है।  भक्तजन आशीर्वाद के लिए व्रत रखते हैं। इस दिन अन्न और वस्त्र दान करना अत्यंत पुण्यफलदायक होता है। इस समय पूर्वजों के लिए पितृ तर्पण आदि धार्मिक कार्य किए जाते हैं।

भीष्म ने उत्तरायण तक देह त्याग का इंतजार क्यों किया

महाभारत के अनुसार पितामह भीष्म को इच्छा मृत्यु का वरदान था, जिस समय गंगा पुत्र भीष्म को अर्जुन ने भीष्म को बाणों से वेधा, उस समय सूर्य दक्षिणायन थे। सूर्य का दक्षिणायन होना देवताओं की रात का समय माना जाता है। इस समय को धार्मिक ग्रंथों में शुभ नहीं माना जाता है। मान्यता है कि इस समय मृत्यु पाने वाले व्यक्ति को मोक्ष नहीं मिलता, क्योंकि मोक्ष के द्वार बंद रहते हैं।


इसलिए भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण यानी देवताओं का दिन शुरू होने का इंतजार किया और इसके बाद माघ शुक्ल पक्ष अष्टमी के शुभ मुहूर्त में देह त्याग किया। बता दें कि मकर संक्रांति से ही सूर्य उत्तरायण होना शुरू होते हैं।

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