सड़क पर लाल मुंह वाले बंदर, गांव बना काले मुंह के बंदरों का बसेरा - जंगल से गायब हो गए आम, चार बीजी, तेंदू, हर्रा, बहेड़ा, आंवला व जामुन के पेड़ - बचपन में बच्चों की टोली के साथ जाते थे जंगल में - कामर्शियल हुई सरकार, हर जगह लगा रही सागौन ही सागौन
बालाघाट. जिले की पहचान जंगल से है। क्षेत्रफल का आधा से अधिक हिस्से में जंगल हैं। पर अब यह तेजी से उजड़ रहे हैं। इसे बचाना हम सबकी जिम्मेदारी है। दो दशक के अंदर जिस तेजी से जंगल कटे हैं। यदि यही सिलसिला रहा तो आने वाले दो दशक में सबकुछ खत्म हो जाएगा। इसलिए तमाशबीन बनने से अच्छा है कि इसे बचाने के लिए मुहिम शुरू की जाए। जिम्मेदार मुख्यालय छोड़े। जंगल तक जाए और अपनी जिम्मेदारी का निर्वाहन करें। अन्यथा जनता हल्ला बोलेगी।
मैं जंगल को बचपन से देख रहा हूं, क्योंकि लांजी के पास खोलमारा गांव में मेरा जन्म हुआ। गांव में ही पांचवीं तक पढ़ाई हुई। मेरी खेती अब भी जंगल से लगे ग्राम रट्टा में है। हम बच्चों की टोली बचपन में जंगल में चार बीजी, तेंदू, हर्रा, बेहड़ा तोडऩे जाती थी। दादी मां हर्रा व बेहड़ा दवा के लिए बुलाती थी। उस समय जंगल में बंदर आम, जामुन, महुआ, तेंदू व चार बीजी के पेड़ पर उछल कूद करते थे। उनके उछल कूद से बहुत सारे जामुन, आम, तेंदू व चार बीजी के फल नीचे गिरते थे, जिसे पाने की होड़ बच्चों में रहती थी। अब यह पेड़ ही जंगल से गायब हो गए हैं। जिम्मेदारों की अनदेखी और घोर लापरवाही ने इसे उजाड़ दिया।
अब वन विभाग कमर्शियल हो गया है वह फलदार पेड़ पौधे लगाने की बजाय सागौन के पेड़ लगाने पर ज्यादा विश्वास कर रहा है, जिस कारण जंगली जीव जंतु शहर के तरफ आ रहे हैं। यही कारण है कि जंगल नष्ट हो रहे हैं। मानव और जंगली हिंसक जीवों की आपस में लड़ाई हो रही है। समय रहते हम सबको सरकार को और जनता को मिलकर इस दिशा में कार्य करना पड़ेगा। तब ही जंगल बच पाएंगे वर्तमान स्थिति यह है
वर्तमान स्थिति यह है कि जंगल में अब बंदरों की उछल कूद नहीं, सड़क पर धमा चौकड़ी दिख रही है। सड़क पर लाल मुंह वाले बंदर डेरा जमाए रहते हैं। खाने-पीने के लिए वे रास्ते से गुजरने वालों पर निर्भर हैं। गांव काले मुंह के बंदरों का बसेरा बन गया है।
बालाघाट का भविष्य निर्भर है जंगल पर
जंगल हमें ऑक्सीजन प्रदान करते हैं। जलवायु नियंत्रित करता है। मिट्टी के कटाव को रोकता है। जंगल कटेगा तो जैव विविधता को नुकसान होगा। प्राकृतिक आपदाएं आएंगी। इसलिए जंगल को बचाने हल्ला बोलना होगा। एकजुट होकर आवाज उठानी होगी। सरकार और अन्य जिम्मेदारों पर दबाव डालकर उनको जंगल सहेजन के लिए विवश करना होगा। ताकि वे ठोस कदम उठाए। हमारे बालाघाटा का भविष्य जंगल पर निर्भर है।
टॉपिक एक्सपर्ट - युनूस खान पप्पा भाई उम्र - 57 वर्ष वन व वन्यजीव प्रेमी