बाल अधिकार कार्यकर्ता वासुदेव शर्मा ने कहा, यह प्रस्ताव निश्चित रूप से निजीकरण की दिशा में ले जाता है। अनुमति देते समय सरकार को यह शर्त रखनी चाहिए कि 50 प्रतिशत सीटें वंचित समुदायों के छात्रों के लिए आरक्षित की जाएं या 50 प्रतिशत सीटें सरकारी प्रवेश परीक्षा के माध्यम से भरी जाएं।
राज्य Karnataka में चिकित्सा शिक्षा को लेकर शिक्षाविद्, छात्र संगठन और सरकार एक बार फिर आमने-सामने हैं। इन्होंने चिकित्सा शिक्षा मंत्री डॉ. शरण प्रकाश पाटिल के राज्य में सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल पर आठ नए मेडिकल कॉलेज खोलने के प्रस्ताव का पुरजोर विरोध किया है। इनका कहना है कि यह प्रस्ताव, शिक्षा, विशेषकर चिकित्सा शिक्षा के निजीकरण, व्यावसायीकरण और निगमीकरण की दिशा में एक और कदम है। विकास के नाम पर पीपीपी मॉडल, सार्वजनिक संसाधनों को निजी मुनाफाखोरों को सौंपने का एक जरिया मात्र है।मंत्री के अनुसार ये कॉलेज कोलार, तुमकूरु, विजयपुर, दावणगेरे, उडुपी, दक्षिण कन्नड़, बेंगलूरु ग्रामीण और विजयनगर जिलों में प्रस्तावित हैं।
संविधान के विरुद्ध
शिक्षाविद् वी. पी. निरंजनाराध्या ने इस प्रस्ताव की निंदा की और पीपीपी मॉडल को शिक्षा एवं स्वास्थ्य सेवा जैसे प्रमुख क्षेत्रों के लिए अनुपयुक्त बताया। उन्होंने कहा, जब निजी संस्थाएं नियंत्रण कर लेती हैं, तो शिक्षा एक सामाजिक अधिकार के बजाय एक व्यवसाय बन जाती है। यह हाशिए पर पड़े समुदायों को शिक्षा की पहुंच से वंचित करता है और शिक्षा को धनी लोगों का विशेषाधिकार बना देता है। यह बेहद अमानवीय है और संविधान के मूल सिद्धांतों के विरुद्ध है।
अधिकारों से वंचित रह जाएंगे
उनके अनुसार चिकित्सा शिक्षा में निजीकरण छात्रों में लाभ-केंद्रित मानसिकता को बढ़ावा देता है। जब कोई मेडिकल की पढ़ाई पूरी करने के लिए करोड़ों खर्च करता है, तो उसका मकसद लोगों की सेवा करने के बजाय उस पैसे की वसूली करना होता है। शिक्षा राज्य द्वारा वित्त पोषित, राज्य द्वारा प्रबंधित और बिना किसी भेदभाव के सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए। अन्यथा, जो लोग भुगतान नहीं कर सकते, वे बुनियादी अधिकारों से वंचित रह जाएंगे।
इन शर्तों पर मिले अनुमति
बाल अधिकार कार्यकर्ता वासुदेव शर्मा ने कहा, यह प्रस्ताव निश्चित रूप से निजीकरण की दिशा में ले जाता है। अनुमति देते समय सरकार को यह शर्त रखनी चाहिए कि 50 प्रतिशत सीटें वंचित समुदायों के छात्रों के लिए आरक्षित की जाएं या 50 प्रतिशत सीटें सरकारी प्रवेश परीक्षा के माध्यम से भरी जाएं।
निजीकरण से बढ़ेगा व्यावसायीकरण
अखिल भारतीय लोकतांत्रिक छात्र संगठन (एआइडीएसओ) ने इस कदम को शिक्षा के निजीकरण और व्यावसायीकरण की दिशा में उठाया गया कदम बताया। ऐसे समझौते अत्यधिक फीस, शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट, और गरीब व मध्यमवर्गीय छात्रों के लिए अवसरों में कमी का कारण बनेंगे। सरकार को कॉरपोरेट लॉबी के दबाव में आने के बजाय सार्वजनिक कोष से पर्याप्त धन आवंटित कर सरकारी मेडिकल संस्थानों को पूरी तरह सशक्त और विस्तारित करना चाहिए।