पीठ ने कहा कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है और यह बार सदस्यों को जाति के आधार पर विभाजित होने या इसका राजनीतिकरण करने की अनुमति नहीं देगा। पीठ ने जोर देकर कहा कि किसी भी अनुभवजन्य डेटा के अभाव में, जाति के आधार पर आरक्षण नहीं किया जा सकता।
बेंगलूरु. सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बेंगलूरु बार एसोसिएशन चुनावों में जाति के आधार पर आरक्षण देने से इनकार कर दिया और कहा कि किसी भी अनुभवजन्य डेटा के अभाव में यह भानुमती का पिटारा खोल देगा।
यह मामला जस्टिस सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ के समक्ष आया। पीठ ने कहा कि यह एक संवेदनशील मुद्दा है और यह बार सदस्यों को जाति के आधार पर विभाजित होने या इसका राजनीतिकरण करने की अनुमति नहीं देगा। पीठ ने जोर देकर कहा कि किसी भी अनुभवजन्य डेटा के अभाव में, जाति के आधार पर आरक्षण नहीं किया जा सकता।
पीठ ने कहा, यह भानुमती का पिटारा खोल देगा। किसी भी अनुभवजन्य डेटा के बिना, यह नहीं किया जा सकता है। महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करना एक अलग बात थी। हम बार सदस्यों को जाति के आधार पर विभाजित होने या मुद्दों का राजनीतिकरण करने की अनुमति नहीं देंगे।
याचिकाकर्ता एनजीओ का प्रतिनिधित्व करने वाली वरिष्ठ अधिवक्ता माधवी दीवान ने पीठ के समक्ष दलील दी कि पिछले 50 वर्ष में, बेंगलूरु बार एसोसिएशन के शासी निकाय में एससी/एसटी या ओबीसी श्रेणियों से एक भी सदस्य नहीं चुना गया। दीवान ने अन्य देशों में बार निकाय चुनावों में आरक्षण और सकारात्मक कार्रवाइयों पर जोर देते हुए कहा कि प्रमुख पदों पर विविधता होनी चाहिए।
सर्वोच्च न्यायालय एनजीओ एडवोकेट्स फॉर सोशल जस्टिस की याचिका पर सुनवाई कर रहा था, जिसमें आगामी बेंगलूरु बार एसोसिएशन चुनावों में एससी, एसटी और ओबीसी से संबंधित सदस्यों के लिए आरक्षण की मांग की गई थी।
पीठ ने कहा कि इस समय न्यायालय प्रासंगिक आंकड़ों के अभाव में अक्षम है और कहा कि देश के सांसद महत्वपूर्ण पदों पर विभिन्न समुदायों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त संवेदनशील हैं। पीठ ने कहा कि जब भी आरक्षण के लिए कोई कानून आता है, तो इस मुद्दे पर कई बहसें होती हैं और विशेषज्ञ निकायों के साथ विचार-विमर्श भी होता है।
पीठ ने कहा, विभिन्न डेटा एकत्र किए जाते हैं और उपलब्ध कराए जाते हैं। सूचित ज्ञान के साथ, आप उचित निर्णय ले सकते हैं। आज की स्थिति में, प्रासंगिक डेटा के अभाव में, हम पूरी तरह से अक्षम हैं। हालांकि, शीर्ष अदालत ने कहा कि वह बार एसोसिएशनों में सुधार से संबंधित एक अन्य लंबित याचिका में गंभीर प्रश्न की जांच करेगी।
पीठ ने कहा कि दोनों पक्षों की ओर से गंभीर बहस योग्य मुद्दे हैं, जिन पर स्वस्थ माहौल में विचार-विमर्श किया जा सकता है। पीठ ने कहा, हम नहीं चाहते कि विभिन्न बार निकाय ऐसे आधारों पर विभाजित हों। यह हमारा इरादा नहीं है।
शीर्ष अदालत ने इस मामले को बार एसोसिएशनों को मजबूत करने के लंबित मुद्दे के साथ जोडऩे का फैसला किया, जिस पर 17 फरवरी को सुनवाई होनी है। इस साल जनवरी में, शीर्ष अदालत ने अपने आदेश को संशोधित किया और एडवोकेट एसोसिएशन ऑफ बेंगलूरु को बार निकाय में उपाध्यक्ष का पद बनाने की अनुमति दी, जिसके लिए आने वाले हफ्तों में चुनाव होंगे।