सपनों की सिद्धि में अपनों के संबंध पीछे छूट रहे
मैसूरु. आचार्य विमलसागर सूरीश्वर ने कहा कि दूरदराज के क्षेत्रों में बसने या विदेश जाने वालों को यह सावधानी बरतनी अत्यंत आवश्यक है कि अपने करियर को अच्छा बनाने की धुन में कहीं हम अपनी संस्कृति और संस्कारों की बलि न चढ़ा दें। पढ़-लिखकर विद्वान बनने का यह अर्थ कतई नहीं हैं कि हम अपनी भाषा, परंपरा, धर्म, संस्कृति, संस्कार और कर्तव्यों को ही भूल जाए। अगर ऐसा होता है तो यह जीवन की सबसे बड़ी हानि होगी, जिसकी भरपाई किसी भी बड़ी भौतिक सफलता से नहीं की जा सकेगी।
आचार्य ने कहा कि आज हजारों प्रतिभाएं अपने घर, परिवार, समाज, संस्कृति और मातृभूमि को छोड़कर दूरदराज के इलाकों में बस रही हैं अथवा विदेश जा रही हैं। उच्च शिक्षा प्राप्त कर बड़ी उपलब्धियों के सपने साकार करना ही उनका एक मात्र ध्येय है। इन सपनों की सिद्धि में अपनों के संबंध पीछे छूट रहे हैं। अपार धन कमाने और सफल इंसान बनने की चाह में स्नेह संबंध, सात्विक संवेदनाएं, आध्यत्मिक साधनाएं, धर्म का अहोभाव और राष्ट्र, समाज व परिवार के प्रति अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियां, सब समाप्त होते जा रहे हैं। यह हीरों के बदले कांच के टुकड़े खरीदने जैसा भारी नुकसान का सौदा हो रहा है। ऐसी मानसिकताएं और परिस्थितियां हमें सुख नहीं, दुःख और अशांति के मार्ग पर ले जाएंगी।
आचार्य ने कहा कि ज्यादातर लोग समाज से पूरी तरह टूट रहे हैं। अनेक युवा अंतरजातीय विवाह कर भविष्य के लिए बहुत बड़ी जोखिम ले रहे हैं। पारिवारिक व्यवस्थाएं छिन्न-भिन्न हो रही हैं।इस अवसर पर कल्याण मित्र वर्षावास समिति के कांतिलाल चौहान, अशोक दांतेवाड़िया, वसंत राठौड़, अशोक दांतेवाड़िया, भंवरलाल लुंकड़, भोजराज जैन, चैनसिंह राजपुरोहित, जीतू लुंकड़, बाबूलाल बागरेचा, गौतम सालेचा और अनिल लुंकड़ आदि अनेक सदस्य उपस्थित थे।