बांसवाड़ा

सम्भागीय मुख्यालय बनने के बावजूद इस शहर को अब तक नहीं मिला यूआईटी का दर्जा

पैमाने पर खरा, है फिर भी बांसवाड़ा कब तक करेगा इंतजार: शहर के बाहरी हिस्से में बसी 70 से अधिक कॉलोनियों का विकास अटका, यूआईटी बने तो जनता से वसूला जा रहा पैसा विकास पर समान रूप से खर्च हो

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गत वर्ष राज्य सरकार ने बांसवाड़ा को संभाग मुख्यालय तो बना दिया, लेकिन शहर में नगर विकास प्रन्यास (यूआईटी) की स्थापना का करीब एक साल से इंतजार है। यूआईटी के अभाव में नगर परिषद क्षेत्र की पेराफेरी में बसी बस्तियां तरक्की की राह तक रही हैं। अगर यहां प्रन्यास बन जाए तो विकास के रास्ते खुल सकते हैं।

संभाग मुख्यालय होने के बावजूद बांसवाड़ा में यूआईटी का नहीं होना विकास के रास्ते में बाधा की तरह है। जानकारों का कहना है कि यूआईटी खोलने के लिए जरूरी दोनों पैमानों, जनसंख्या और जमीन पर बांसवाड़ा खरा उतरता है। लोग भी चाहते हैं कि शहर के बाहरी हिस्सों में भी विकास हो, ताकि समान अवसर और सुविधाएं लोगों को मिल सकें।

पुराने शहर की सीमाओं को लांघते हुए बांसवाड़ा शहर एक छोर से दूसरे छोर तक करीब 10 किलोमीटर तक फैल गया है। मौजूदा स्थिति में आधारभूत सुविधाएं सीमित ही हैं। इसका उदाहरण है कि शहर के बाहरी हिस्सों में बनी 70 से अधिक कॉलोनियों को एक अदद सडक़ बनने तक का इंतजार करना पड़ रहा है। इन कॉलोनियों में विकास और सुविधाओं के पेटे नगर परिषद पैसा तो जमा कर रही है, लेकिन खर्च नहीं कर रही है।

चारों दिशाओं में फैल रहा बांसवाड़ा शहर
जयपुर रोड पर सुरपुर तक
डूंगरपुर रोड पर सुंदनपुर तक
उदयपुर रोड पर बड़ गांव तक
दाहोद रोड पर बोरवट तक
रतलाम रोड पर समाईपुरा तक

48 नए गांव की 1500 बीघा जमीन मिली
शहर में अभी तक नगर परिषद जैसी संस्था ही विकास और सुविधाओं का जिम्मा ढो रही रही है। नए परिसीमन के हिसाब से शहर का विस्तार हो गया है। शहर की सीमाओं में करीब 38 गांव बड़े व 10 छोटे मजरों को मिलाकर 48 गांव आ गए हैं। साथ ही शहर की सीमा में आसपास की 1500 बीघा सरकारी भूमि भी दर्ज हो चुकी है।

छोटी-बड़ी 70 कॉलोनियों को विकास का इंतजार
पेराफेरी में शामिल गांव और शहर के बाहरी हिस्सों में छोटी-बड़ी 70 कॉलोनियों में एक सडक़ तक नहीं है, जबकि भवन निर्माण के नाम पर नगर परिषद वहां के लोगों से स्वीकृति की फाइलों पर पैसा वसूल कर रही है। सार्वजनिक रोशनी, सडक़, सौंदर्यीकरण जैसे कामों के लिए नगर परिषद के लोग चक्कर लगा रहे हैं।

शहर का विकास, मास्टर प्लान से
शहर का विकास मास्टर प्लान के मुताबिक ही हो सकता है। शहरी सीमा के भीतर विकास नगर परिषद करती है। पेराफेरी में डवलपमेंट का जिम्मा युआईटी का होता है। यहां यूआईटी बनेगी तो दर्जनों कॉलोनियों के विकास का रास्ता खुलेगा। नगर परिषद को तो केवल भू-रूपांतरण का अधिकार है। यूआईटी पर अब बांसवाड़ा का अधिकार बनता है। कम से कम एक साल से तो इंतजार कर ही रहे हैं।

शहर का विकास, मास्टर प्लान से
शहर का विकास मास्टर प्लान के मुताबिक ही हो सकता है। शहरी सीमा के भीतर विकास नगर परिषद करती है। पेराफेरी में डवलपमेंट का जिम्मा युआईटी का होता है। यहां यूआईटी बनेगी तो दर्जनों कॉलोनियों के विकास का रास्ता खुलेगा। नगर परिषद को तो केवल भू-रूपांतरण का अधिकार है। यूआईटी पर अब बांसवाड़ा का अधिकार बनता है। कम से कम एक साल से तो इंतजार कर ही रहे हैं।
दिलीप गुप्ता, सेवानिवृत्त आयुक्त

कर्मचारी-अधिकारी भी होने चाहिए
शहर ही क्या, मैं तो गांव का भी विकास करने के लिए तैयार हूं। पेराफेरी का डवलपमेंट होना ही चाहिए। हां, यह सही है कि पेराफेरी की फाइल भू-रूपांतरण के लिए नगर परिषद में आती है। सरकार को चाहिए कि कर्मचारी के लिए अधिकार भी दें। वैसे यूआईटी का पहला अधिकार है कि वह पेराफेरी का विकास करे। हम भी एक साल से इंतजार कर रहे हैं।
जैनेंद्र त्रिवेदी, सभापति, नगर परिषद

Published on:
20 May 2024 06:43 pm
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