नेशनल इन्वायरमेंट सिंपोजियम में पहुंचे बारां पहुंचे इंटेक के वाइस चेयरमैन प्रो.सुखदेव सिंह
बारां में दो दिवसीय नेशनल इन्वायरमेंट सिंपोजियम में भाग लेने पहुंचे इंटेक के वाइस चेयरमैन से बातचीत
मुकेश गौड़
बारां. हमारा देश पुराकाल से ही ऐतिहासिक विरासत के मामले में समृद्ध रहा है। यूं तो पुरा संपदा और विरासत के संरक्षण की दिशा में एएसआई यानी कि आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया लगातार प्रयास कर ही रही है। मगर यह प्रयास महत्वपूर्ण इमारतों व संपदाओं को संरक्षित रखने तक ही सीमित हैं। इंटेक का यह प्रयास है कि संरक्षण के इस काम को माइक्रो लेवल तक ले जाया जाए। यह बात बारां में चल रहे दो दिवसीय नेशनल इन्वायरमेंट सिंपोजियम में भाग लेने पहुंचे इंटेक के वाइस चेयरमैन प्रो. सुखदेव सिंह ने कही।
देशभर में चैप्टर कर रहे कार्य
प्रो. सिंह ने बताया कि इंटेक विरासत के संरक्षण एवं उसे सहेजने के लिए देशभर में चैप्टर के माध्यम से काम कर रहा है। उनका प्रयास है कि भारतीय संस्कृति से जुड़ी महत्वपूर्ण कला, समाज, शिल्पकला, स्मारक, वन्यजीवन आदि को अपने स्तर पर बचाने या सहेजने के प्रयास किए जाएं। उन्होंने बताया कि भारत सरकार की पहल पर 27 जनवरी 1984 को इंटेक यानी की स्थापना की गई। नई दिल्ली में इसका मुख्यालय है। यह प्रदेश व जिला स्तर पर चैप्टर के माध्यम से काम करता है। प्रत्येक चैप्टर में 25 सदस्य व एक कन्वीनर और को-कन्वीनर होते हैं।
बारां की मांडणा कला का संरक्षण
सिंह ने बताया कि इंटेक के माध्यम से जिले की मांडणा कला को बचाने और उसको अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले जाने का महत्वपूर्ण कार्य भी इंटेक ने किया। इसके अलावा अब प्रयास है कि शाहाबाद के जंगलों को कटने से बचाने का सकारात्मक हल खोजा जाए। इसके लिए वे आवश्यक जनसमर्थन जुटाकर पूरे तथ्यों के साथ इस मामले को केन्द्र सरकार तक पहुंचाएंगे। इंटेक के काम करने के तरीके के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि एएसआई सरकार की ओर से बनाए गए एक्ट के तहत काम करता है। यह नियमानुसार 60 से 100 वर्ष पुरानी या उससे अधिक प्राचीन विरासत को सहेजने का काम करता है। ऐसे में कई पुरा संपदा, संस्कृति व विरासत संरक्षण से अछूते रह जाते हैं। यहां पर इंटेक की भूमिका शुरू होती है। हम विरासत को न केवल संरक्षित करते हैं, बल्कि उसके औचित्य को बरकरार रख इसे जनोपयोगी बनाने पर जोर देते हैं।
कई तरह से करते हैं जागरुक
सिंह ने बताया कि विरासत के संरक्षण के अलावा लोगों में जागरुकता लाने का काम भी इंटेक ने शुरू किया है। इसके तहत हैरिटेज वॉक, टूरिस्ट वॉक, शिविर, सेमिनार आदि का आयोजन किया जाता है। उन्होंने बताया कि इंटेक ने अमृतसर के ग्रामीण इलाकों में तांबे और पीतल के हाथ से बनाए जाने वाली बर्तन निर्माण की कला को संरक्षित किया। इसकी यूनेस्को में लिस्टिंग करवाई। इसी प्रकार राजस्थान के कालबेलिया नृत्य को भी यूनेस्को की संरक्षित कला की सूची में स्थान दिलाया।
भारतीय स्थापत्य कला का संरक्षण
इंटेक प्राचीन महलों, हवेलियों और इमारतों की स्थापत्य कला के संरक्षण में भी काम कर रही है। इसके तहत श्रमिकों और निर्माण कारीगरों को प्रशिक्षण देने के लिए शिविर लगाए जाते हैं, ताकि प्राचीन भवन निर्माण कला जीवित रहे। अब तो सीबीएसई स्कूलों में हैरिटेज अवैयरनेस प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं। इसके अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं।