उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) अब सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि बीएलओ के लिए खौफ का नाम बनती जा रही है। जिले में एक के बाद एक लगातार बीएलओ की मौतों ने पूरे शिक्षा विभाग को हिला कर रख दिया है।
बरेली। उत्तर प्रदेश के बरेली जिले में SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) अब सिर्फ एक प्रशासनिक प्रक्रिया नहीं, बल्कि बीएलओ के लिए खौफ का नाम बनती जा रही है। जिले में एक के बाद एक लगातार बीएलओ की मौतों ने पूरे शिक्षा विभाग को हिला कर रख दिया है। हार्ट अटैक बताया जा रहा है, लेकिन सवाल यह है कि आखिर संयोग ही क्यों हर बार बीएलओ ही बन रहे हैं? लगातार तीन मौतों के बाद बीएलओ और उनके परिवारों में दहशत का माहौल है।
बिशारतगंज क्षेत्र से आई खबर ने शिक्षा व्यवस्था की संवेदनशीलता पर बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है। बिशारतगंज स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालय कन्या कंपोजिट के इंचार्ज प्रधानाचार्य विनोद कुमार शर्मा की अचानक मौत हो गई। वह बिथरी चैनपुर विधानसभा क्षेत्र के भाग संख्या 261 के बीएलओ के रूप में SIR ड्यूटी निभा रहे थे। परिजनों का सीधा आरोप है कि SIR के काम का असहनीय दबाव ही उनकी मौत की वजह बना।
रविवार रात भोजन के बाद विनोद कुमार शर्मा अपने कमरे में सोने चले गए थे। रात करीब 12 बजे अचानक उनकी तबीयत बिगड़ी और कुछ ही पलों में सब कुछ खत्म हो गया। परिजनों के मुताबिक, हार्ट अटैक से उनकी मौत हुई। इस खबर के फैलते ही शिक्षक समुदाय में शोक के साथ-साथ गुस्सा भी फूट पड़ा। सोमवार सुबह उनके घर पर शिक्षकों, रिश्तेदारों और परिचितों की भीड़ उमड़ पड़ी।
मृतक के पुत्र शिवांश शर्मा ने बताया कि उनके पिता वर्ष 2027 में सेवानिवृत्त होने वाले थे। उम्र और स्वास्थ्य समस्याओं के बावजूद SIR की जिम्मेदारियों ने उन्हें मानसिक रूप से तोड़ दिया था। शिवांश के मुताबिक, उनके पिता ने खंड शिक्षा अधिकारी मझगवां को लिखित पत्र देकर SIR ड्यूटी से मुक्त किए जाने की गुहार लगाई थी। पत्र में आंखों की समस्या, उम्र और मोबाइल आधारित ऑनलाइन कार्य में असमर्थता का स्पष्ट उल्लेख था। यह भी लिखा गया था कि विद्यालय के अन्य कर्मचारियों की ड्यूटी कट चुकी है, लेकिन उनकी फरियाद अनसुनी कर दी गई। इसके बाद से वह लगातार तनाव में रहने लगे थे।
यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले भी शिक्षक सर्वेश कुमार गंगवार की SIR ड्यूटी के दौरान हार्ट अटैक से मौत हो चुकी है। लगातार हो रही मौतों के बावजूद न तो सिस्टम ने सबक लिया और न ही ड्यूटी के मानकों पर कोई पुनर्विचार हुआ।