बैतूल। जिले में सरकारी स्कूलों की स्थिति कागजों पर तो मजबूत दिखती है, लेकिन जमीनी हकीकत बेहद चिंताजनक है। हर साल सरकारी स्कूलों में दर्ज छात्र संख्या लगातार घटती जा रही है। हालात यह हैं कि कई स्कूलों में पढ़ाई से ज्यादा खाली कक्ष और सीमेंट-कांक्रीट की इमारतें नजर आती हैं। शिक्षा विभाग के यू-डाइस […]
बैतूल। जिले में सरकारी स्कूलों की स्थिति कागजों पर तो मजबूत दिखती है, लेकिन जमीनी हकीकत बेहद चिंताजनक है। हर साल सरकारी स्कूलों में दर्ज छात्र संख्या लगातार घटती जा रही है। हालात यह हैं कि कई स्कूलों में पढ़ाई से ज्यादा खाली कक्ष और सीमेंट-कांक्रीट की इमारतें नजर आती हैं। शिक्षा विभाग के यू-डाइस पोर्टल में दर्ज आंकड़े इस गंभीर संकट की ओर साफ इशारा करते हैं। जिले के 145 सरकारी स्कूल ऐसे हैं, जहां कुल दर्ज छात्र संख्या केवल 1001 है। इसका मतलब यह हुआ कि औसतन हर स्कूल में 6 से 7 बच्चे ही पढ़ रहे हैं।
हैरानी की बात यह है कि इतनी कम छात्र संख्या के बावजूद इन स्कूलों में एक से दो शिक्षक पदस्थ हैं। सवाल यह उठता है कि जब स्कूलों में पढऩे वाले बच्चे ही नहीं हैं, तो शिक्षण व्यवस्था किसके लिए चलाई जा रही है? शिक्षा विभाग इस स्थिति को आरटीई (शिक्षा का अधिकार) कानून की मजबूरी बताता है। आरटीई के तहत हर एक किलोमीटर की बसाहट में एक स्कूल होना अनिवार्य है। इसी कारण कम दर्ज संख्या वाले स्कूलों को न तो पास के स्कूलों में मर्ज किया जा सकता है और न ही बंद। शिक्षा विभाग का तर्क है कि पिछले वर्ष कुछ स्कूलों को बंद करने का प्रस्ताव शासन को भेजा गया था, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं आया। ऐसे में विभाग के हाथ बंधे हुए हैं और कम छात्र संख्या के बावजूद स्कूलों का संचालन करना उसकी जिम्मेदारी बन गया है। यह स्थिति शासन और विभाग के बीच समन्वय की कमी को भी उजागर करती है, जिसका सीधा असर शिक्षा की गुणवत्ता और संसाधनों के सही उपयोग पर पड़ रहा है।
जनसंख्या में गिरावट से घट रही संख्या
ग्रामीण इलाकों में छात्र संख्या घटने के पीछे विभाग बच्चों की जनसंख्या में गिरावट को मुख्य कारण मानता है। कई बसाहटों में 6 से 10 वर्ष की उम्र के बच्चों की संख्या कम हो गई है, जिससे नए प्रवेश नहीं हो पा रहे हैं। विभाग यह भी मानता है कि छात्र संख्या हर साल घटती-बढ़ती रहती है। कभी 5 से बढकऱ 10 हो जाती है, तो कभी और कम। इसी अनिश्चितता के चलते स्कूल बंद करना व्यवहारिक नहीं माना जाता। हालांकि, यह तर्क शिक्षकों की पदस्थापना और सरकारी संसाधनों के उपयोग पर सवाल खड़े करता है। विभाग मानता है कि यदि किसी स्कूल में छात्र नहीं हैं, तो शिक्षक को दूसरे स्कूल में अटैच किया जा सकता है, लेकिन उसकी मूल पदस्थापना उसी स्कूल में बनी रहेगी। यह व्यवस्था कागजों में तो संतुलित दिखती है, लेकिन व्यवहार में संसाधनों की बर्बादी को ही बढ़ावा देती है। यू-डाइस पोर्टल में दर्ज आंकड़ों के आधार पर ही शिक्षा विभाग अपनी कार्ययोजना तैयार करता है। अधिकारी फिलहाल इन आंकड़ों का अध्ययन करने और शिक्षकों की जानकारी जुटाने की बात कह रहे हैं।
इनका कहना