पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे (दोहिते) हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मोहर्रम मनाया जाएगा
इस्लाम धर्म को मानने वालों का प्रमुख दिन मुहर्रम है। मुहर्रम की 10वीं तारीख को यौम-ए-आशूरा के नाम से जाना जाता है। यह 6 जुलाई को होगा। मोहर्रम को लेकर कलाकार ताजिए बनाने जुटे है। पैगंबर मोहम्मद साहब के नवासे (दोहिते) हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मोहर्रम मनाया जाएगा। मुस्लिम धर्मावलंबी रविवार को इमाम हुसैन को याद करते हुए ढोल और ताशों की मातमी धुनों के बीच ताजिए निकालेंगे। भीलवाड़ा शहर और आसपास के मुस्लिम मोहल्ले में इन दिनों ताजिए बनाने और संवारने का काम चल रहा है।
हाजी नबी अली गौरी ने बताया कि शनिवार बाद नमाज असर दादाबाड़ी, मोहम्मदी कॉलोनी, हुसैन कॉलोनी, भवानीनगर, भोपालपुरा, कांवाखेड़ा कच्ची बस्ती, स्टेशन मस्जिद, आरके कॉलोनी, चपरासी कॉलोनी, पुलिस लाइन, गांधीनगर व रामनगर क्षेत्र के ताजिए अपने-अपने मुकाम से रवाना होकर स्टेशन होते हुए देर रात बाहला में नीलगरों की मस्जिद चौक पहुंचेंगे। यहां से जुलूस पुरानी धानमंडी चौक में मुकाम लगाएगा।
ढोल ताशों की मातमी धुन पर अखाड़ा प्रदर्शन होगा। यह सभी ताजिए पुन: अपने मुकाम के लिए रवाना हो जाएंगे। रविवार सुबह शहर के सभी मोहर्रम अपने मुकाम से रवाना होकर दोपहर में सर्राफा बाजार पहुंचेंगे। यहां से जुलूस नीलगरों का चौक, पुरानी कचहरी, पटवारियों का मंदिर, तालाब की पाल व बड़ला चौराहा होते हुए करबला पहुंचेगा। जहां करबला सोसायटी की देखरेख में मोहर्रम सैराब होंगे। शहर में 14 से 15 ताजिए तैयार किए जा रहे है।
पटारियों के मंदिर में ताजिए का प्रसाद चढ़ाया जाता है। वही मंदिर से भी प्रसाद का वितरण होता है। यह परंपरा वर्षो से चली आ रही है। दोनों समुदाय की ओर से प्रसाद का आदान-प्रदान होता।