पितरों को दोपहर 12 बजे से पहले लगाई धूप
भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा से 16 दिवसीय श्राद्ध रविवार से प्रारंभ हो गए। इसकी शुरुआत चंद्र ग्रहण के साथ हुई, लेकिन ग्रहण का पितृ पक्ष पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। वहीं श्राद्ध पक्ष का समापन 21 सितम्बर को सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या के साथ होगा। रविवार को पहले श्राद्ध में लोगों ने चंद्रग्रहण के सूतक काल से पहले दोपहर 12 बजे तक ही पूजा करके अपने पूर्वजों को याद करते हुए श्राद्ध की धूप दी।
पितृ ऋण से मिलती है मुक्ति
पंडित अशोक व्यास ने बताया कि सनातन धर्म में श्राद्ध पक्ष का विशेष धार्मिक महत्व है। श्राद्ध शब्द श्रद्धा से बना है, जिसका मतलब है पितरों के प्रति हमारी श्रद्धा भाव है। हमारे अंदर प्रवाहित रक्त में हमारे पितरों के अंश हैं, जिसके कारण हम उनके ऋणी होते हैं और यही ऋण उतारने के लिए श्राद्ध कर्म किए जाने का विधान बताया गया है। पितृपक्ष में किए गए श्राद्ध-तर्पण, पिंडदान इत्यादि कार्यों से पूर्वजों की आत्मा को तो शांति प्राप्त होती ही है, साथ ही कर्ता को भी पितृ ऋण से मुक्ति मिल जाती है। व्यास ने बताया कि श्राद्ध या तर्पण दोपहर 12 बजे के बाद करने से अनुरूप फल प्राप्त होते हैं। इसके अलावा दिन में कुतुप और रोहिणी मुहूर्त श्राद्ध कर्म के लिए सबसे शुभ माने जाते हैं। श्राद्ध करने के लिए किसी ब्राह्मण को घर पर बुलाकर मंत्रों का उच्चारण करें और पूजा के बाद जल से तर्पण करें। इसके बाद गाय, कुत्ते और कौवे के लिए भोजन निकालें। इन जीवों को भोजन देते समय अपने पितरों का स्मरण जरूर करें।
पितृ पक्ष में ऐसे करे तर्पण
पितरों को पानी पिलाने की प्रक्रिया को ही तर्पण कहते हैं। इसके लिए पीतल या स्टील की परात लें। उसमें शुद्ध जल डालें और फिर थोड़े काले तिल और दूध डालें। जल डालते समय अपने प्रत्येक पितृ के लिए कम से कम तीन बार अंजलि से तर्पण करें।
श्राद्ध वाले दिन जल्दी उठकर स्नान करें। इसके बाद घर की साफ-सफाई करें और पूरे घर में गंगाजल छिड़कें। पितरों के लिए भोजन तैयार करें। श्राद्ध के लिए ब्राह्मण को घर पर बुलाएं और उन्हें भोजन कराएं। ब्राह्मण के पैर धोएं। ब्राह्मण को भोजन कराने से पहले पंचबली यानी गाय, कुत्ते, कौवे, देवता और चींटी के लिए भोजन अवश्य निकालें। ये एक महत्वपूर्ण परंपरा है। भोजन के बाद ब्राह्मणों को दान भी करें और उनका आशीर्वाद लें।