मंगलवार को धनतेरस के साथ दिवाली पर्व की शुरूआत हुई तो त्योहारी परम्पराओं से घर-परिवार की खुशियां दोगुनी हो गईं। पत्रिका के परम्परा कॉलम में जानें आधुनिक दौर में भी कैसे निभाई जाती हैं परम्पराएं... एक ऐसी ही परम्परा है बहि खाता और गादी पूजन की...जरूर पढ़ें...
समय के साथ-साथ व्यापार के तौर तरीके, अकाउंट के तरीकों में भी बदलाव आ गया है। जीएसटी के इस दौर में टैक्स सिस्टम ऑनलाइन है और हिसाब किताब के लिए नए-नए सॉफ्टवेयर आ गए हैं, लेकिन बदलाव के इस दौर में व्यापारियों ने बही और मुनीम परंपरा को अपनी दुकान से दूर नहीं किया है। भोपाल में आज भी यह परम्परा जारी है। मंगलवार को धनतेरस पर बकायदा बही की पूजा की गई और सोने का कामकाज करने वालों ने अपनी गादियां बदलीं। शहर के सराफा बाजार, गल्ला बाजार, किराना बाजार में आज भी हिसाब किताब देखने का काम मुनीम करते हैं।
इस समय हिसाब-किताब रखने के लिए टैली सॉफ्टवेयर, बही खाता सॉफ्टवेयर आदि आ गए हैं, जिस पर डिजिटल खाते बनाए जाते हैं। जीएसटी आने के बाद क्ह्रश्वयूटर सॉफ्टवेयर में हिसाब रखते हैं, लेकिन डिजिटल के साथ मैन्युअल भी हिसाब के मुनीम द्वारा रखते हैं। इसके तहत अलग से ट्रेडिंग अकाउंट बनाना, लेजर लिखना, प्रॉफिट एंड लॉस अकाउंट बनाना यह सारा काम करने के बाद करो का कैल्कुलेशन मैन्युअल भी करते हैं।
सराफा बाजार में श्रीधर ज्वेलर्स पर कार्यरत 75 वर्षीय दीपचंद सोनी ने बताया कि वे पिछले 45 सालों से यहां काम कर रहे हैं। मुनिम का काम करने वाले लाभमल जैन ने बताया कि वे 40 सालों से यह कार्य कर रहे हैं। खाते मेंटेन करते हैं। इधर सराफा व्यवसायी नवनीत अग्रवाल बताते हैं कि व्यापार में बही खाते, गादी का अपना महत्व है। इसलिए धन तेरस, दिवाली पर बही खातों की पूजा की जाती है और गादी बदली जाती है।