Kargil Vijay Diwas 2024: कारगिल की जंग 83 दिन चली और भारतीय सेना के आगे पाकिस्तानी घुसपैठियों को घुटने टेकने पड़े। देश की रक्षा करने के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने वाले जवानों में मध्य प्रदेश के तीन युवा भी शामिल थे, जिनकी शहादत के किस्से आज भी लोग सुनाते हैं..
Kargil Vijay Diwas 2024: 1999 का कारगिल वॉर (Kargil War) आज 25 साल बाद भी इसकी यादें ताजा होती हैं, जेहन में एक ही बात आती है जो जोश से भर देती है कि जब-जब देश की सुरक्षा खतरे में होती है, तब-तब हर भारतीय अपने देश के लिए जान हथेली पर लेकर तैयार रहता है। कारगिल की जंग 83 दिन चली और भारतीय सेना के आगे पाकिस्तानी घुसपैठियों को घुटने टेकने पड़े। कारगिल के इस युद्घ में देश के जवानों ने अपनी जान न्यौछावर कर देश की सीमाओं की रक्षा की थी। इन सैकड़ों जवानों में मध्य प्रदेश के तीन युवा भी शामिल थे। क्या आपने सुने हैं इन तीन जवानों की शहादत के किस्से, जिन्हें आज लोग खुद सुनाते हैं, आप भी जानें कौन थे एमपी के ये जांबाज…
कारगिल की लड़ाई में शहीद होने वाले जवानों में मध्य प्रदेश के तीन जवान थे। तीनों ही भिंड जिले के रहने वाले थे। इनमें द्वितीय बटालियन राजपुताना राइफल्स रेजिमेंट के हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया, लांस नायक करन सिंह और ग्रेनेडियर दिनेश सिंह भदोरिया का नाम शामिल है।
16 जून 1960 को एमपी के भिंड जिले के गांव पीपरी में जन्मे सुल्तान सिंह नरवरिया की शहादत को यहां के लोग आज भी याद करते हैं। सुल्तान सिंह के बेटे देवेंद्र नरवरिया ने बताया कि 1999 में जब कारगिल जंग छिड़ी तब उनके पिता घर पर छुट्टी पर आए थे। फोन पर पिताजी को कारगिल युद्घ की सूचना मिली। फोन रखते ही सुल्तान सिंह नरवरिया तुरंत जंग के लिए रवाना हो गए।
शहीद सुल्तान सिंह के बेटे देवेंद्र सिंह बताते हैं कि उनके पिता को 'ऑपरेशन विजय' का हिस्सा बनाया गया था। 10 जून को उन्हें एक टुकड़ी का सेक्शन कमांडर बनाया गया था। इस टुकड़ी को आदेश दिया गया था कि पाकिस्तानी सेना के कब्जे में ली गई तोलोलिंग पहाड़ी पर द्रास सेक्टर पॉइंट 4590 रॉक एरिया पर बनी चौकी को आजाद कराना है। 12-13 जून की रात थी और शून्य से भी नीचे तापमान था। ऐसे विपरीत हालात में युद्ध जारी था।
दुश्मन की तरफ से भारी गोलीबारी हो रही थी लेकिन, सुल्तान सिंह नरवरिया भगवान राम के जयकारे लगाते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे। दुश्मन की गोलियां खत्म हुई तो उनके कुछ साथी जवान शहीद हो चुके थे।
नरवरिया को भी कई गोलियां लग चुकी थीं। इसके बावजूद करीब दस पाकिस्तानी सैनिकों को ढेर करते हुए सुल्तान सिंह नरवरिया ने अपना टास्क पूरा किया और तोलोलिंग चोटी पर तिरंगा झंडा फहराकर ही दम लिया। हालांकि पाकिस्तानी सेना की गोलीबारी में वे शहीद हो गए। उनके साथ 17 जवान भी शहीद हुए थे।
वीर चक्र से नवाजे गए थे सुल्तान सिंह नरवरिया
हवलदार सुल्तान सिंह नरवरिया की वीरता को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें 2002 में मरणोपरांत वीर चक्र से नवाजा। केंद्र सरकार ने उनके परिवार को जमीन देकर उनके घर का निर्माण कराया। इसके साथ ही मेहगाब में एक पेट्रोल पंप भी उनके परिवार को दिया गया। नरवरिया के बेटे ने कहा कि वे भारत सरकार से मिले सम्मान से वे संतुष्ट हैं।
सुल्तान सिंह नरवरिया के बेटे देवेंद्र नरवरिया भी सेना में जाना चाहते थे। लेकिन 2022 में नगरीय निकाय चुनाव में मेहगांव नगर परिषद से वे पार्षद चुने गए हैं।
भिंड जिले के पूर्व थाना क्षेत्र के सगरा गांव के रहने वाले थे कारगिल युद्ध के वीर योद्धा करण सिंह। करण सिंह ने देश के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर कर दिया था। वह सेना की राजपूत रेजीमेंट में भर्ती हुए थे और कारगिल युद्ध के दौरान पाकिस्तानी घुसपैठियों को करारा जवाब दिया था। 16 नवंबर 1999 कारगिल इलाके में घुसपैठियों से हुई मुठभेड़ में लांस नायक करन सिंह शहीद हो गए थे। करन सिंह को मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया गया था।
ग्रेनेडियर दिनेश सिंह भदोरिया भी ऐसे जवान हैं जो, कारगिल युद्ध में शहीद हो गए थे। वे भी एमपी के भिंड के ही रहने वाले थे। उन्हें भी भारत सरकार ने मरणोपरांत वीर चक्र से सम्मानित किया था। दिनेश सिंह भदोरिया 31 जुलाई 2000 को कारगिल क्षेत्र में पाकिस्तानियों के घुसपैठ के दौरान हुई मुठभेड़ में शहीद हो गए थे। दिनेश सिंह भदोरिया की शहादत के किस्से आज भी लोग गर्व से सुनाते हैं।