Illegal sand mining : शासन-प्रशासन अभी न इस अवैध कारोबार को रोकने के पुख्ता इंतजाम कर पाया, न माफिया पर लगाम कसी। तत्कालीन प्रमुख सचिव ने सभी संभागायुक्त और कलेक्टर्स जरूरी निर्देश दिएथे लेकिन उसे भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। (MP News)
MP News: एमपी सरकार की तमाम नीति और नियमों के बावजूद मध्यप्रदेश में अवैध रेत उत्खनन बढ़ता जा रहा है। प्रदेश में खनिज विकास निगम ने 38 रेत समूहों का माइन डेवलपर एंड ऑपरेटर के तौर पर चयन किया है। प्रदेश में 728 रेत खदानें वैध तरीके से चल रही हैं। 200 नई खदानें पर्यावरणीय अनुमति की प्रक्रिया में हैं। इनके समानांतर 200 से ज्यादा अवैध रेत खदानें भी चल रही हैं। जहां प्रतिबंधित भारी मशीनरी से नदियों का सीना छलनी कर लाखों जीवों के आवास तबाह कर अवैध तरीके से रेत निकाली जा रही है।
शासन-प्रशासन अभी न इसे रोकने के पुख्ता इंतजाम कर पाया, न माफिया पर लगाम कसी। प्रदेश में मोटे तौर पर 2000 करोड़ का रेत का अवैध कारोबार जारी है (Illegal sand mining of 2000 crores)। मिलीभगत ऐसी कि जून 2024 में तत्कालीन प्रमुख सचिव ने सभी संभागायुक्त और कलेक्टर्स को रेत की उपलब्धता वाले क्षेत्र खदान के रूप में घोषित करने के निर्देश दिए। पर अब तक ऐसा नहीं हो पाया।
अभी अवैध रेत उत्खनन और ज्यादा बढ़ गया, क्योंकि 15 जून से बारिश के सीजन के चलते रेत उत्खनन पर प्रतिबंध लग जाएगा। सीधी में सभी रेत खदानें बंद होने के बावजूद रेत उत्खनन पकड़ा जाना इसका ताजा सबूत है। पत्रिका ने अपनी टीमों की मदद से 16 जिलों में हकीकत देखी तो यह सामने आया। ग्राउंड रिपोर्ट कल के अंक से पत्रिका में पढ़िए लगातार।
फोटो में आप सीहोर जिले के मठ्ठा गांव का दृश्य देख रहे हैं। यह नियमानुसार आवंटित खान है। इसमें भी नर्मदा नदी में रेत निकालने के लिए नदी के बीच चौड़ी सड़क बना दी। इन सड़कों से डंपर और जेसीबी, पाकलेन नदी में उस स्थान तक पहुंच जाते हैं, जहां रेत का भंडार है। नियम के अनुसार, रेत का उत्खनन पानी से 5 मीटर दूर से मजदूरों द्वारा किया जाना चाहिए, पर यहां नदी की धार रोककर जेसीबी और पाकलेन चल रही हैं।
लगातार प्रयास कर रहे हैं। 41 जगह ई-चैक गेट लगा रहे हैं। सैटेलाइट निगरानी शुरू की है। खदानों की जियो टैगिंग की है। दायरे से बाहर खनन पर अलर्ट मिलता है। खनिज अधिकारी को मौके से रिपोर्ट देना अनिवार्य है।
खनिज परिवहन वाले सभी वाहनों का विभाग के पास पंजीयन कराना अनिवार्य किया है। वाहनों में जीपीएस सिस्टम अनिवार्य किया है। इससे पता किया जा सकता है कि वाहन किस रूट से कहां रेत लेकर गया है।
हमने कुछ क्षेत्रों में नई रेत खदानें शुरू करने के लिए प्रस्ताव पर्यावरणीय अनुमति के लिए भेजे हैं। 200 प्रस्ताव पर्यावरण अनुमति की प्रक्रिया में हैं। ईसी मिलने के बाद नीलामी करेंगे। चैकिंग की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने और अनदेखी के कारण डंपरों में तय मात्रा से ज्यादा रेत ढोई जा रही है। इससे राजस्व का नुकसान होने के साथ सड़कें भी खराब हो रही हैं क्योंकि सड़कें उतना वजन सहने के लिए बनी ही नहीं होती हैं। दुर्घटनाएं भी होती हैं।
रेत उत्खनन की अनुमति से पहले डिस्ट्रिक्ट सर्वे रिपोर्ट (डीएसआर) बनवाना जरूरी है। इसमें पर्यावरण प्रबंधन का प्लान शामिल होता है। यह नेशनल एक्रीडिटेशन बोर्ड ऑफ एजुकेशन एंड ट्रेनिंग या क्वालिटी कंट्रोल काउंसिल ऑफ इंडिया से संबद्ध विशेषज्ञों से बनवाने का नियम है। डीएसआर जिला मजिस्ट्रेट को सौंपी जाती है वह मूल्यांकन कराते हैं। मजिस्ट्रेट जिले की भौतिक और भूगर्भीय विशेषताओं पर परीक्षण कराएं, उसके बाद वेरीफिकेशन रिपोर्ट स्टेट एक्सपर्ट अप्रेजल कमेटी को भेजें। इसमें तकनीकी और साइंटिफिक एक्सपर्ट रहेंगे।
यह कमेटी रिपोर्ट सिया को सौंपेगी। इसके आधार पर फैसला करेगी कि पर्यावरणीय अनुमति देनी है या नहीं। रीप्लेनिशमेंट स्टडी भी जरूरी है। कई जिलों में एक बार रिपोर्ट से वर्षों काम चलाया जाता है। एनजीटी में मिनकॉन एक्सप्लोरेशन मामले में यह गड़बड़ी उजागर हुई। भिंड जिले में सिंध नदी में जिन 72 खदानों को लीज पर दिया, वे सभी पानी में डूबी मिलीं। एनजीटी ने सभी खदानों पर रोक लगाई। वहां पर न डीएसआर बनी, न रीप्लेनिशमेंट स्टडी कराई।
ख निज संसाधन विभाग ने रेत खदानों की नीलामी और प्रबंधन मध्यप्रदेश राज्य खनिज विकास निगम को सौंप रखा है। निगम - अधिकारी चैंबर से बैठकर रेत खदानों की नीलामी कर रहे हैं। अमला यह देखने की जहमत भी नहीं उठाता कि नदी किनारे जिस क्षेत्र में रेत खदान की लीज स्वीकृत की जा रही है, उसकी स्थिति कैसी है। यही कारण है भिंड व हरदा जिलों में एनजीटी ने जलमग्न हिस्से रेत उत्खनन पर प्रतिबंध लगाया है।