कप्यूटर, मोबाइल और डिजिटल खातों के दौर में भी बीकानेर के घरों और दुकानों में दीपावली की रात एक पुरानी परंपरा आज भी इस नगरी को सुगंधित रखती है। वह है लक्ष्मी पूजन के बाद बही में हाथ से लेखन। रियासत काल से चली आ रही यह परंपरा आज भी श्रद्धा और विश्वास के साथ निभाई जा रही है।
बीकानेर. कप्यूटर, मोबाइल और डिजिटल खातों के दौर में भी बीकानेर के घरों और दुकानों में दीपावली की रात एक पुरानी परंपरा आज भी इस नगरी को सुगंधित रखती है। वह है लक्ष्मी पूजन के बाद बही में हाथ से लेखन। रियासत काल से चली आ रही यह परंपरा आज भी श्रद्धा और विश्वास के साथ निभाई जा रही है। दीपावली की शाम जब आरती की लौ जलती है, उसी समय परिवार का मुखिया बही में ‘श्री गणेशाय नम:’ लिखकर वर्षभर की समृद्धि की कामना करता है।
आज भी बिकती हैं कलम, दवात और बहियां
लक्ष्मी पूजन की सामग्री खरीदते समय लोग अब भी कलम, स्याही-दवात और नई बही खरीदना नहीं भूलते। कई परिवार निब वाले पेन और काली स्याही का उपयोग करते हैं, तो कुछ ने परंपरा के साथ आधुनिकता को जोड़ा है। वे कॉपी, रजिस्टर और बॉलपेन से बही लेखन करते हैं। यह बही वर्षभर के आर्थिक और धार्मिक लेखे के साथ श्रद्धा का दस्तावेज़ बन जाती है।
तिथि, वार और संवत का होता है उल्लेख
बही लेखन में दीपावली के दिन की तिथि, वार, लग्न, संवत, ईस्वी सन और मुहूर्त का उल्लेख अनिवार्य रूप से किया जाता है। कई परिवार घर-परिवार के सदस्यों के नाम भी इस पवित्र लेख में जोड़ते हैं, मानो लक्ष्मी माता का आशीर्वाद सभी तक पहुंचे।
दशकों पुरानी बहियां बनीं परंपरा की साक्षी
शहर के अनेक परिवारों के पास आज भी दशकों पुरानी बहियां सुरक्षित रखी हुई हैं। ये बहियां सिर्फ कागज़ नहीं, बल्कि पीढ़ियों की आस्था और संस्कारों की गवाही हैं। घर के बुजुर्ग इन बहियों को बड़ी सावधानी से सहेजते हैं और नई पीढ़ी को इसकी परंपरा से जोड़ते हैं।
ऐसे होता है पूजन
लक्ष्मी पूजन के दौरान बही के पहले पृष्ठ पर कुमकुम से स्वास्तिक बनाया जाता है। अक्षत-रोली से पूजन के बाद सबसे पहले लिखा जाता है ‘श्री गणेशाय नम:’ और ‘श्री’। इसके बाद मां लक्ष्मी, मां सरस्वती, मां महाकाली और भगवान लक्ष्मीनाथ के नाम अंकित किए जाते हैं। फिर लिखा जाता है ‘‘श्रीलक्ष्मीजी महाराज सदा साय करै। आज श्री लक्ष्मीजी महाराज रो उच्छब घर-परिवार रै सागै घणै मान अर हरख सूं मनायो।’’
आस्था और लेखा का संगम
बीकानेर की यह परंपरा केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि संस्कृति, लेखा और आस्था का अद्भुत संगम है। यह बताती है कि तकनीक बदल सकती है, परंपरा नहीं। आज भी दीपावली की रात बहियों के पन्नों पर जब स्याही से श्रद्धा लिखी जाती है, तो लक्ष्मीजी साय करै...पर वाकई विश्वास और गहरा होता जाता है।