रियासत काल से मां नागणेचीजी का मंदिर लोक आस्था का केन्द्र है। मंदिर में स्थापित मां देवी की मूर्ति अष्टादश भुजाओं वाली है। देवी के हाथों में विभिन्न तरह के शस्त्र धारण किए हुए है। शहरवासियों में मां नागणेचीजी के प्रति गहरी आस्था और श्रद्धा है। साल भर यहां दर्शन -पूजन का क्रम चलता रहता है। नवरात्र के दौरान यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शनों के लिए पहुंचते है। कहा जाता है कि यह मंदिर पांच सौ वर्ष से अधिक प्राचीन है। मंदिर में स्थापित देवी मूर्ति नगर संस्थापक राव बीका जोधपुर से बीकानेर लेकर आए और यहां प्रतिष्ठित की।
बीकानेर. बीकानेर की धरती पर सदियों से एक देवी स्वरूप अपनी दिव्य छवि से आस्था के दीप जला रही हैं मां नागणेचीजी।राठौड़ों की कुलदेवी मानी जाने वाली यह माता लोक आस्था का ऐसा केन्द्र हैं, जहां न केवल बीकानेरवासी, बल्कि दूर-दराज़ से आने वाले श्रद्धालु भी सिर झुकाते हैं। पांच शताब्दी से भी अधिक समय पहले नगर संस्थापक राव बीका जोधपुर से इस मूर्ति को लाए थे और प्रतिष्ठित कर मंदिर की स्थापना की थी। तभी से यह मंदिर भक्तिभाव, पूजा-अर्चना और नवरात्र जैसे पर्वों का मुय स्थल बना हुआ है।
चामुण्डा स्वरूप की देवी
इतिहासकार जानकी नारायण श्रीमाली के अनुसार, मां नागणेचीजी दरअसल चक्रेश्वरी या चामुण्डा का स्वरूप हैं। दक्षिण भारत के कर्नाटक में स्थित चामुण्डा का मंदिर राठौड़ों की कुलदेवी से जुड़ा है। राव बीका इन्हीं का स्वरूप नागणेचीजी माता की प्रतिमा के रूप में जोधपुर से बीकानेर लेकर आए और यहां स्थापित किया। इस तरह बीकानेर की सांस्कृतिक और धार्मिक पहचान में यह मंदिर स्थायी रूप से जुड़ गया।
आस्था और भक्ति का अखंड प्रवाह
पवनपुरी क्षेत्र में स्थित इस मंदिर में नित्य पूजा, भोग और आरती के साथ भजन-कीर्तन और स्तुति गान होते हैं। बड़ी संया में श्रद्धालु यहां मां के दरबार में हाजिरी भरते हैं। खासकर नवरात्र के दिनों में मंदिर का वातावरण अद्भुत हो उठता है। भक्त कतारों में खड़े होकर माता के दर्शन करते हैं, और उनके चरणों में सिर नवाकर आशीर्वाद पाते हैं।