Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला दिया कि नियमों के अंतर्गत स्पष्ट रूप से अधिकृत अधिकारी ही अनुशासनात्मक अधिकारों का प्रयोग करते हुए कार्रवाई कर सकता है।
Bilaspur High Court: छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने एक मामले में फैसला दिया कि नियमों के अंतर्गत स्पष्ट रूप से अधिकृत अधिकारी ही अनुशासनात्मक अधिकारों का प्रयोग करते हुए कार्रवाई कर सकता है। कोर्ट ने इस आधार पर ब्लॉक शिक्षा अधिकारी (बीईओ) के खिलाफ कलेक्टर द्वारा पारित निलंबन आदेश को रद्द करते हुए कहा कि यह आदेश ऐसे प्राधिकारी द्वारा पारित किया गया था जिसे कार्रवाई का वैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं था।
खंडपीठ ने कहा कि चूंकि कलेक्टर नियुक्तिकर्ता अथवा अनुशासनात्मक प्राधिकारी नहीं थे, इसलिए उनका पारित किया गया आदेश अधिकार क्षेत्र से परे और अवैध था। प्रकरण के अनुसार मानसिंह भारद्वाज श्रेणी-2 के राजपत्रित अधिकारी हैं, जिनका मूल पद प्राचार्य का है और वे ब्लॉक शिक्षा अधिकारी, जगदलपुर के रूप में कार्यरत थे। 6 जून 2025 को जिला स्तर युक्तियुक्तकरण समिति के अध्यक्ष एवं कलेक्टर, बस्तर ने उन पर शिक्षकों के युक्तियुक्तकरण से संबंधित निर्देशों के उल्लंघन और गलत जानकारी प्रस्तुत करने का आरोप लगाकर निलंबन आदेश पारित कर दिया। भारद्वाज ने उक्त आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे एकल पीठ द्वारा 4 जुलाई 2025 को खारिज कर दिया गया।
सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की खंडपीठ ने कहा कि नियम 9(1) के अनुसार केवल नियुक्तिकर्ता अथवा राज्यपाल द्वारा विधिपूर्वक अधिकृत प्राधिकारी ही निलंबन आदेश पारित कर सकता है। कलेक्टर द्वारा पारित निलंबन आदेश को विधिसम्मत न पाते हुए कोर्ट ने खारिज कर संभागायुक्त को नियम कानून के अनुसार दो सप्ताह के भीतर इस विषय पर नया आदेश पारित करने की स्वतंत्रता दी। साथ ही अपील स्वीकार कर एकल पीठ का आदेश रद्द कर दिया गया।
अपील में बीईओ ने कहा कि नियम 9(1) के अनुसार केवल नियुक्तिकर्ता प्राधिकारी, उससे उच्च प्राधिकारी, या राज्यपाल द्वारा अधिकृत कोई अन्य प्राधिकारी ही उनका निलंबन आदेश पारित कर सकता है। नियुक्तिकर्ता सचिव, स्कूल शिक्षा विभाग हैं और केवल संभागायुक्त को 4 अगस्त 2008 की अधिसूचना अनुसार उनके खिलाफ कार्रवाई का अधिकार है। निलंबन आदेश में विभागीय कार्यवाही की कोई जानकारी नहीं दी गई, ना ही कोई कारण बताने का अवसर प्रदान किया गया। यह आदेश स्वयं कलेक्टर द्वारा हस्ताक्षरित भी नहीं था।