Bilaspur News: बच्चों को जीवन का आधार सीखने के लिए श्रीमद्भागवत गीता अहम भूमिका निभाएगी। समाज में लोग जीवन के अंतिम क्षणों में इसका पाठ करते हैं, लेकिन अब बच्चे स्नातक में वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ेंग , तो वो जीवन जीने की सही कला सीख पाएंगे।
Bhagavad Gita Studies 2024: श्रीमद् भगवद् गीता को हिंदुओं का सबसे पवित्र ग्रंथ माना जाता है और हर कोई गीता में बताए गए मार्ग पर चलना चाहता है। यह पहली बार हो रहा है जब पं. सुंदरलाल शर्मा (मुक्त) विश्वविद्यालय (ओयू) के छात्र श्रीमद् भगवद् गीता को स्नातक में वैकल्पिक विषय के रूप में पढ़ेंगे।
विवि का मानना है कि इससे जहां युवाओं में गीता में बताए गए मार्ग पर चलने के लिए प्रेरणा मिलेगी तो वहीं आने वाले समय में रोजगार के अवसर भी मिलेंगे। इसके अलावा आयुर्वेद के मूल आधार को लेकर भी नया कोर्स शुरू किया जाएगा। कुलपति डॉ. बंशगोपाल सिंह ने बताया कि ओपन यूनिवर्सिटी द्वारा एक बड़ी पहल की गई है जिसके तहत स्नातक में एक वैकल्पिक विषय के रूप में कोर्स शुरू करना प्रस्तावित है। पाठ्यक्रम तैयार करने की प्रक्रिया जारी है। पाठ्यक्रम के लिए विशेषज्ञ लगे हुए हैं। अगले सत्र से स्नातक छात्र इस विषय की पढ़ाई कर सकते हैं। इस विषय को शुरू करने का मुय उद्देश्य यह है कि आने वाली पीढ़ियां और युवा श्रीमद् भगवत गीता के बारे में जान सके और उसमें बताए गए बातों को अपने जीवन में उतारकर अच्छे व्यक्तित्व का निर्माण हो सके और वह समाज में एक अच्छे इंसान बन सकें।
मुक्त विवि रामचरितमानस की चौपाइयों को वैज्ञानिक नजरिए से एक नए कोर्स की किताबों में समेटकर पिछले 5 वर्ष से पढ़ा रहा है। चौपाइयों में जिक्र किए गए रावण के पुष्पक विमान या रामसेतु का पत्थर या राम रावण युद्ध में चलने वाले तीर हो या फिर आकाशवाणी हो, इन तमाम बातों को यूनिवर्सिटी के इस डिप्लोमा कोर्स में अलग-अलग विषयों की किताबों के जरिए बताने की कोशिश गई है कि सनातन धर्म रामचरितमानस विज्ञान पर आधारित हैं। 5 वर्ष में इसमें 124 छात्रों ने दाखिला लिया है। एक वर्षीय इस कोर्स के लिए उम्र का कोई बंधन नहीं है।
12वीं पास कोई भी व्यक्ति इसे कर सकता है। इसके लिए एनरोल करने वाले छात्रों को ₹3 हजार 600 की फीस है। कोर्स का पूरा ध्यान रामचरित मानस को वैज्ञानिक दृष्टिकोण से छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करना है। इस विषय को शुरू करने का उद्देश्य समाज की संकीर्णता को दूर करने के लिए धार्मिक किताबें पढ़ने और उसके अन्दर छुपे विज्ञान को बाहर लाकर व्यावहारिक सामाजिक बदलाव लाना है। क्योंकि सामाजिक समरसता के विरोध में कुछ बातें हैं जो समाज को जाति वर्ग में बांटकर धार्मिक जीवन पद्धति में बाधक बनी हुई हैं।