बिलासपुर

Navratri special: 45 साल पहले बना सतबहिनिया मंदिर, मां दुर्गा संग सात महुआ पेड़ों की पूजा से पूरी होती है मनोकामना, जानें इतिहास

Navratri special: बिलासपुर सरकंडा बंधवापारा स्थित सतबहिनिया मंदिर अपनी अनोखी परंपरा और मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर की स्थापना महुआ के सात पेड़ों से जुड़ी है।

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महुआ के पेड़ों पर टिकी श्रद्धा (फोटो सोर्स- pexels)

Navratri special: बिलासपुर सरकंडा बंधवापारा स्थित सतबहिनिया मंदिर अपनी अनोखी परंपरा और मान्यताओं के लिए प्रसिद्ध है। मंदिर की स्थापना महुआ के सात पेड़ों से जुड़ी है। गोंड़ आदिवासी समाज ने इन पेड़ों को देवी के सात रूप मानकर उनकी पूजा शुरू की थी। 45 साल पहले इन्हीं पेड़ों के स्थान पर मां की प्रतिमा स्थापित कर मंदिर का निर्माण किया गया। मान्यता है कि जब तक भक्त पेड़ों की पूजा नहीं करते, मंदिर में मां की आराधना अधूरी मानी जाती है।

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427 मनोकामना दीप जलाए

शारदीय नवरात्र पर मंदिर में सुबह 6.30 से 8.30 बजे और शाम 7 से 7.30 बजे आरती की जा रही है। इस बार 427 मनोकामना दीप जलाए गए हैं। 30 सितंबर को दोपहर 2 बजे से भजन संध्या का आयोजन होगा, जिसमें क्षेत्र की प्रसिद्ध मंडलियां अपनी प्रस्तुति देंगी। 1 अक्टूबर को हवन, पूजन और पूर्णाहुति की जाएगी।

Navratri special: महुआ पेड़ में देखते है देवी का स्वरूप

सतबहिनिया मंदिर समिति के अध्यक्ष जी.आर. देवांगन बताते हैं कि प्राचीन काल में गोंड़-आदिवासी जंगलों में निवास करते थे और वनोपज ही उनकी आजीविका का मुख्य साधन था। इस कारण वे वनदेवी की पूजा करते थे। यही परंपरा सतबहिनिया मंदिर की नींव बनी। स्थानीय निवासी स्व. घासीराम गोंड और स्व. भुखूराम गोंड़ के पूर्वजों ने यहां सात महुआ पेड़ लगाए और उन्हें देवी का स्वरूप मानकर पूजा शुरू की। पेड़ों के संरक्षण व पूजा का जिम्मा उनके परिवार ने संभाला।

महुआ का गोवर्धन पर्वत जैसा महत्व

जिस तरह द्वापर युग में भगवान कृष्ण ने ब्रजवासियों के लिए गोवर्धन पूजा का विधान शुरू करवाया था, उसी तरह बंधवापारा के गोंड़-आदिवासी महुआ के पेड़ों की पूजा करते आए हैं। महुआ उनके जीवन का मुख्य आधार रहा है। खाने-पीने से लेकर पशुओं के चारे और आजीविका तक, हर स्तर पर इसका उपयोग होता था।

इसी वजह से उन्होंने एक ही स्थान पर सात पेड़ लगाए और उन्हें देवी के सात स्वरूप मानकर पूजा-अर्चना शुरू की। आज भी सतबहिनिया मंदिर परिसर में सात महुआ के पेड़ मौजूद हैं। इनमें से एक पेड़ के सूख जाने पर उसी स्थान पर नया महुआ का पेड़ लगा दिया गया। नवरात्रि पर इन पेड़ों पर चुनरी चढ़ाने की परंपरा आज भी जारी है। श्रद्धालुओं का विश्वास है कि सच्चे मन से की गई प्रार्थना यहां अवश्य पूरी होती है।

जिस स्थान पर महुआ के सात पेड़ लगे थे, वहीं वर्ष 1981 में एक मंदिर का निर्माण किया गया। यहां मां दुर्गा की प्रतिमा स्थापित की गई। समय के साथ मंदिर परिसर का विस्तार हुआ और लक्ष्मी-नारायण, शिव, राम-सीता, हनुमान और राधा-कृष्ण के छोटे-छोटे मंदिर भी बनाए गए।

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Published on:
28 Sept 2025 12:35 pm
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