Bilaspur High Court: हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे भीमेश्वर रवि को बरी कर दिया।
Bilaspur High Court: हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में अपनी पत्नी की हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रहे भीमेश्वर रवि को बरी कर दिया। चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा, जस्टिस बिभु दत्ता गुरु की डिवीजन बेंच ने निर्णय में कहा कि निचली अदालत द्वारा दी गई दोषसिद्धि केवल मृतक के मृत्युकालिक कथन पर आधारित थी। इसे एक घातक प्रक्रियात्मक चूक के कारण बरकरार नहीं रखा जा सकता।
दरअसल, बयान दर्ज करते समय पीड़िता को मानसिक रूप से स्वस्थ होने की पुष्टि करने वाले डॉक्टर का स्पष्ट प्रमाण पत्र नहीं था। न्यायालय ने माना कि इस चूक ने एक महत्वपूर्ण संदेह पैदा किया, जिससे दोषसिद्धि को बनाए रखना संभव नहीं था। कोर्ट ने प्रदेश के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को ऐसी चूकों की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए एक महत्वपूर्ण निर्देश जारी कर कहा कि मृत्युकालिक कथन दर्ज करते समय, उपस्थित चिकित्सा अधिकारी से एक स्पष्ट, लिखित और समकालीन प्रमाण पत्र अनिवार्य प्राप्त किया जाना चाहिए, जो बयान देने वाले की उस समय की मानसिक फिटनेस को प्रमाणित करता हो।
भीमेश्वर उर्फ रवि पर आरोप था कि उसने अपनी पत्नी लक्ष्मी बाई पर अपने गृह ग्राम बरही में मिट्टी का तेल डालकर आग लगा दी। लक्ष्मी बाई गंभीर रूप से झुलस गई। 5 मई, 2019 को डीकेएस सुपरस्पेशलिटी अस्पताल रायपुर में उसकी मृत्यु हो गई। लक्ष्मी बाई का मृत्युकालिक कथन दर्ज करने सहित जांच के बाद, बालोद पुलिस ने आरोपी पति के खिलाफ धारा 302 के तहत आरोप पत्र दायर किया।
अपीलकर्ता के वकील भरत शर्मा ने तर्क दिया कि उनके मुवक्किल को झूठा फंसाया गया था और घटना का कोई चश्मदीद गवाह नहीं था। अपीलकर्ता स्वयं पत्नी को अस्पताल ले गया था। मृत्युकालिक कथन को चुनौती देते हुए वकील ने कहा कि यह अविश्वसनीय था क्योंकि इस मामले में डॉक्टर का कोई प्रमाण पत्र उपलब्ध नहीं था जो यह बताता हो कि मृतक अपना मृत्युकालिक कथन देने के लिए मानसिक रूप से स्वस्थ अवस्था में थी।
अपने बयान में, अपीलकर्ता ने कहा था कि यह एक दुर्घटना थी। उसने दावा किया कि उसकी पत्नी ने शराब पी रखी थी। घर में बिजली नहीं होने के कारण उन्होंने मोमबत्ती जलाई, जिससे उसकी साड़ी में गलती से आग लग गई।
सुनवाई के बाद कोर्ट ने कहा कि भारी मन से हम यह कहने के लिए विवश हैं कि निचली अदालत ने अपीलकर्ता को दोषी ठहराने और सजा देने में गंभीर त्रुटि की। मृत्युकालिक कथन के आधार पर दर्ज की गई दोषसिद्धि को कायम नहीं रखा जा सकता। न्यायालय ने अपील स्वीकार करते हुए धारा 302 के तहत दोषसिद्धि और सजा को रद्द कर 25 मई, 2019 से जेल में बंद भीमेश्वर को रिहा करने का आदेश दिया गया।