बिलासपुर

नगर निगम चुनाव का सियासी विश्लेषण! बीजेपी की जीत के ये हैं 5 सबसे बड़े फैक्टर, तो इन कारणों से हुई कांग्रेस की हार

Factors Of BJPs Victory: नगरीय निकाय चुनावों में बीजेपी ने बंपर जीत दर्ज की है। नगर निगम चुनाव में भाजपा ने बिलासपुर में 70 वार्डों में से 49 में जीत दर्ज करके परिषद में दो तिहाई से अधिक बहुमत हासिल कर लिया है।

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Factors Of BJPs Victory: नगर निगम चुनाव में भाजपा ने बिलासपुर में 70 वार्डों में से 49 में जीत दर्ज करके परिषद में दो तिहाई से अधिक बहुमत हासिल कर लिया है। जबकि कांग्रेस को 35 से घटकर 19 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा है। भाजपा के 2 बागी भी चुनाव जीते हैं। 2019 में हुए चुनाव में भाजपा को 70 में 30 और कांग्रेस के 35 सीटें मिली थीं। महापौर और परिषद में इस एकतरफा जीत की बड़ी वजह भाजपा के इलेक्शन मैनेजमेंट के साथ संगठन में एकजुटता और विधायकों की सक्रियता को माना जा रहा है।

योजनाओं, एकजुटता ने भाजपा को दिलाई सफलता, पिछला कामकाज, अंतर्कलह ले डूबा कांग्रेस को

नगर निगम चुनाव में जीत को भाजपा की रणनीतिक सफलता भी माना जा रहा है। मेयर सहित अन्य प्रत्याशी घोषित करने के बाद पार्टी ने एकजुटता दिखाई। कहीं कोई विरोधाभाषी बयानबाजी नहीं हुई। वहीं कांग्रेस में प्रत्याशी घोषित होते ही असंतोष खुलकर सामने आने लगा। मेयर से लेकर पार्षद प्रत्यशियों के विरोध में भी टिकट के दावेदार और असंतुष्ट सामने आने लगे। भीतरघात भी जमकर हुआ। वहीं कांग्रेस शहर के लिए कोई पुता कार्ययोजना भी प्रस्तुत नहीं कर सकी।

पांच कारण: भाजपा की जीत

  • - पिछली निगम सरकार का कामकाज और शहर की प्रमुख समस्याओं का भी निराकरण न होने के कारण जनता में असंतोष।- भाजपा में प्रत्याशी तय होने के बाद इसका कोई विरोध नहीं हुआ, एकजुटता से चुनाव लड़ा गया।- महतारी वंदन सहित सरकारी योजनाओं का प्रचार प्रसार पूरे चुनाव में भाजपा ने जमकर किया।- प्रदेश में सरकार होने का लाभ मिला, जनता के बीच यह संदेश गया, जिसकी सरकार, उसका मेयर और पार्षद होने पर विकास हो सकेगा।- भाजपा ने अपने घोषणापत्र में शहर के लिए अलग से कार्ययोजना प्रस्तुत की।

कांग्रेस की हार

  • - पिछली बार प्रदेश और शहर दोनों जगह कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी शहर की मूलभूत समस्याएं हल नहीं कर पाई।- मेयर के दावेदारों ने प्रत्याशी घोषित होने के बाद रुचि और सक्रियता नहीं दिखाई, संगठन भी खानापूर्ति करते ही नजर आया।- जनता नहीं चाहती थी कि शहर फिर 5 साल समस्याओं और जनप्रतिनिधियों की आपसी खींचतान झेले।- वार्डों में पार्षदों की निजी छवि और सक्रियता का भी आंकलन हुआ। भीतरघात, गुटबाजी व अंतर्कलह हावी।- शहर के लिए अलग से कोई कार्ययोजना प्रस्तुत नहीं कर पाई कांग्रेस, ज्यादातर पुरानी ही समस्याओं के निराकरण का वादा था।
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