दुनिया में उड़ान भरने के मामले में सबसे बडे आकार के भारतीय सारस पक्षियों का कुनबा दिनोंदिन कम होकर देश के चुनिंदा इलाकों व उत्तरप्रदेश के सारस संरक्षित क्षेत्रों तक सिमटता जा रहा है।
गुढ़ानाथावतान. बूंदी. दुनिया में उड़ान भरने के मामले में सबसे बडे आकार के भारतीय सारस पक्षियों का कुनबा दिनोंदिन कम होकर देश के चुनिंदा इलाकों व उत्तरप्रदेश के सारस संरक्षित क्षेत्रों तक सिमटता जा रहा है।
एक दशक पहले तक देश के सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान के आधे से ज्यादा भू-भाग पर सदियों से अपने कलरव से लोगों को आकर्षित करने वाले भारतीय सारस पक्षी अब राज्य में मात्र आधा दर्जन सरहदी जिलों के चुनिंदा जलाशयों तक सिमटकर अपना अस्तित्व बचाने की जद्दोजहद कर रहे हैं। आबादी का नम भूमियों पर बढ़ता दबाव व जलस्रोतों के किनारों पर प्रतिकूल होती वनस्पति ने राजस्थान में सारस पक्षियों सहित कई प्रजातियों के प्रजनन को प्रभावित किया है और दिनोंदिन इनकी तादात कम हो रही है।
गहरता जा रहा संकट
राजस्थान में राज्य पक्षी गोड़ावण व गिद्धों पर पहले ही लुप्त होने का संकट गहराता जा रहा है और अब सारस पक्षियों की कम होती तादाद और सिमटते आवास पर्यावरण प्रेमियों के लिए चिंता का विषय बने हुए है। राजस्थान के रेगिस्तानी भाग को छोड़कर अधिकांश भाग सदियों से इस सुंदर पक्षी सारस की शरण स्थली रहे है, लेकिन पिछले एक दशक में जल स्रोतों पर अवैध अतिक्रमण व कमजोर मानसून के चलते बदली परिस्थितियों से सारस के प्राकृतिक आवास नष्ट हो गए और ये पक्षी राज्य के मात्र आधा दर्जन जिलों तक सिमट कर रह गए है।
एक या कभी कभार दो सारस का दिखा जोड़ा
राज्य के दक्षिणी-पूर्वी व पूर्वी इलाके में मध्यप्रदेश व उत्तरप्रदेश राज्यों की सरहद के निकट ही अब सारस पक्षी दिखाई दे रहे हैं और इन इलाकों में इनके नेस्टिंग की स्थिति भी चिंताजनक है। राज्य के कोटा महानगर के निकट उमेदगंज पक्षी विहार को सारसों के संरक्षण व प्रजनन के उद्देश्य से विकसित करने का प्रयोग वन विभाग ने किया, लेकिन विगत पांच सालों से मात्र एक या कभी कभार दो सारस का जोड़ा यहां पर दिखाई दे रहा है और नेस्टिंग की कोई जानकारी नहीं है। कोटा व बूंदी के बीच बरधा बांध वेटलैंड पर लंबे समय से सारसों की बड़ी संख्या में उपस्थित बनी हुई है, लेकिन वहां इनकी सुरक्षा एवं संरक्षण को लेकर कोई योजना नहीं बनाई गई है। देखने में आया है कि जलाशयों में मछली ठेके व पेटा काश्त भी इन पक्षियों के प्रजनन पर प्रतिकूल असर डाल रहे है।
शोध से पता चला हाड़ौती में तब थे 150 सारस
करीब पांच साल पहले एक छात्रा के द्वारा किए गए शोध से पता चलता है कि 2015 तक राज्य के हाड़ौती इलाके में लगभग 150 सारस थे, जो 2020 में लगभग 52 ही रह गए थे। राजस्थान में सारसों की संया तेजी से कम होने व इनके संरक्षण की कोई योजना नहीं बनने के चलते यह पक्षी राज्य से लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है। कोटा व बूंदी के बीच बरधा बांध सारस पक्षियों के लिए उपयुक्त वेटलैंड है। जहां अब तक सारस बचे हुए हैं, जिसे सारस संरक्षित क्षेत्र घोषित कर प्रभावी रूप से संरक्षण करने की आवश्यकता है।
विभाग के पास नहीं अधिकृत रिकॉर्ड
राजस्थान में हर साल गर्मियों में वन्यजीवों की गणना के दौरान केवल वन क्षेत्रों के वन्यजीवों की ही गणना या आकलन किया जाता रहा है। पेयजल स्त्रोतों पर होने वाली इस गणना में सारस व गिद्ध भी गिने जाते हैं, लेकिन उनका कोई अधिकृत रेकॉर्ड विभाग के पास उपलब्ध नहीं है। सारस पक्षियों पर 1998-99 में किए गए एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण में राजस्थान में गर्मियों के महीनों में 252 और सर्दियों में 366 सारस दर्ज किए गए। यह अंतिम आधिकारिक सर्वेक्षण उपलब्ध है।
कुछ ही जिलों में दिखे
पक्षी गणना में गत वर्ष पूरे राज्य में केवल कोटा, बूंदी, भरतपुर, डूंगरपुर, प्रतापगढ़, बांसवाड़ा, उदयपुर व चित्तौड़गढ़ जिलों में बहुत कम संख्या में सारस रेकॉर्ड हुए थे। राज्य के कई जलस्रोतों पर सारस का कलरव अब बंद हो गया है। बड़े बांधों व उपयुक्त नम भूमियों के किनारों पर भी खेती होने से सारस का प्रजनन प्रभावित होने लगा है तथा यह सुंदर पक्षी राज्य से लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया है।