पेंच टाइगर रिजर्व क्षेत्र से रामगढ़ विषधारी लाई जाने वाली बाघिन रविवार को भी मध्यप्रदेश और कोटा के वन्यजीव विशेषज्ञों और पैदल गश्ती दलों को चकमा देकर भागने में सफल रही।
बूंदी. पेंच टाइगर रिजर्व क्षेत्र से रामगढ़ विषधारी लाई जाने वाली बाघिन रविवार को भी मध्यप्रदेश और कोटा के वन्यजीव विशेषज्ञों और पैदल गश्ती दलों को चकमा देकर भागने में सफल रही। चार हाथियों पर सवार वन्यजीव विशेषज्ञ, डॉक्टर, अधिकारी, पैदल गश्ती दल कैमरा ट्रेपिंग, पगमार्क से जानकारी जुटाकर बाघिन को तलाशते रहे, लेकिन बाघिन चालाकी से हर कोशिश को विफल करती रही।
पेंच टाइगर रिजर्व क्षेत्र से रामगढ़ विशधारी टाइगर रिजर्व के बीच चल रही इंटरस्टेट टाइगर ट्रांसलोकेशन प्रक्रिया में टीमें लगातार जुटी हैं, लेकिन बाघिन ज्यादा समय तक एक जगह नहीं ठहर रही है, जिससे उसे ट्रेंकुलाइज (बेहोश) करने में वन विशेषज्ञ भी सफल नहीं हो पा रहे। संयुक्त फील्ड टीमें सुबह छह बजे से ऑपरेशन में जुटी रही। निर्धारित प्रोटोकॉल के मुताबिक सबसे पहले सभी कैमरा ट्रैप स्टेशनों की जांच की गई, ताकि बाघिन के ताजे मूवमेंट की जानकारी प्राप्त की जा सके।
पेंच टाइगर रिजर्व क्षेत्र के डिप्टी डायरेक्टर रजनीश सिंह ने बताया कि रविवार सुबह जल्दी ही एक कैमरा ट्रैप से बाघिन के ताजे फोटो प्राप्त हुए, जिससे उसकी पहचान हो गई। इस जानकारी के आधार पर टीमों ने चार हाथी दस्तों और पैदल गश्ती में लगी टीमों की मदद से उसकी तलाश शुरू की। एक जगह बाघिन को झाड़ी के नीचे आराम करते हुए देखा गया। तब टीम ने ट्रेंकुलाइज करने वाली टीम को सूचना दी, तब कुछ ही मिनट में वन्यजीव विशेषज्ञ चिकित्सकों की टीम भी मौके पर जा पहुंची।
दूसरी बार मिली लोकेशन
तलाश के दौरान दोपहर एक बजे एक बाघिन का मूवमेंट एआई से लैस कैमरा ट्रैप सिस्टम से मिला। इसके आधार पर टीमों ने दोपहर में फिर से खोज शुरू की। बारीकी से ट्रेकिंग के बावजूद, बाघिन को फिर से शाम तक नहीं देखा जा सका, जिसके बाद ऑपरेशन को तीसरे दिन भी बिना किसी सफलता के बंद कर दिया गया। फील्ड टीमें सोमवार की सुबह फिर से यह प्रक्रिया शुरू करेंगी।
खतरा देखकर टाल दिया ट्रेंकुलाइज
टीम ने बाघिन को ट्रेंकुलाइज करने के लिए गन तैयार किया, लेकिन मौका मुआयना करने पर टीम ने देखा कि बाघिन एक जलाशय के नजदीक है। यदि बाघिन को गन से ट्रेंकुलाइज किया जाता तो संभव था कि वह बेहोशी की हालत में जलाशय में भी जा सकती है, जो कि उसके जीवन के लिए खतरनाक हो सकता था। बाघिन को काबू में (डार्टिंग) करना असुरक्षित था, क्योंकि लडखड़ाती बाघिन के पानी में गिरने का खतरा था। टीम ने बाघिन के थोड़ा सुरक्षित स्थान पर जाने का इंतजार किया, लेकिन बाघिन ने आस-पास की स्थिति को महसूस किया और तेजी से वहां से हट गई। इसके बाद बाघिन को हाथी दस्तों के जरिए दोपहर तक ट्रैक किया गया, लेकिन वह उस क्षेत्र में नहीं मिली।
दो दिसंबर तक हेलीकॉप्टर की अनुमति
पेंच टाइगर रिजर्व सिवनी की रानी बाघिन को सुरक्षित तरीके से पकडऩे के बाद वन्यजीव विशेषज्ञों की टीम जांच करेगी। इसके बाद ही उसे एनटीसीए के निर्देशों का पालन करते हुए बूंदी टाइगर रिजर्व तक एयर लिफ्ट कर हेलीकॉप्टर से ले जा सकेंगे। वहीं बताया जा रहा है कि भारतीय सेना के हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल करने के लिए दो दिसंबर तक की ही अनुमति मिली है। यदि जल्द बाघिन को ट्रेंकुलाइज कर ट्रांसलोकेशन की प्रक्रिया पूरी नहीं होती है, तो हेलीकॉप्टर के लिए दूसरी बार अनुमति लेने की अड़चन सामने आ सकती है।