RBI Monetary Policy: आरबीआइ ने कैश रिजर्व रेश्यो (CRR) में कटौती करते हुए इसकी दरों में 1% की कमी की है। इससे सस्ते लोन, आसान लोन, कम EMI जैसे फायदे मिलने वाले हैं।
RBI cut CRR: आरबीआइ ने कैश रिजर्व रेश्यो (CRR) को भी 1% घटा दिया है। पहले यह 4% था, जो अब 3% होगा। यह कटौती चार हिस्सों में होगी। इसमें 25 आधार अंक हर बार घटाएं जाएंगे। 6 सितंबर, 4 अक्टूबर, 1 नवंबर और 29 नवंबर से चरणबद्ध कटौती होगी। इससे बैंकिंग सिस्टम में 2.5 लाख करोड़ रुपए की अतिरिक्त नकदी आएगी। इससे बैंकों की लोन की लागत कम होगी और वे ज्यादा लोन दे पाएंगे। बैंकों का अधिक फंड बचेगा, जिसे वे लोन, निवेश या अन्य व्यापारिक गतिविधियों में लगा सकते हैं।
रिजर्व बैंक ने स्टैंडिंग डिपॉजिट फैसिलिटी (SDF) को 5.25% और बैंक रेट को 5.75% कर दिया है। केयरएज रेटिंग्स की रजनी सिन्हा ने कहा कि यह कदम क्रेडिट ग्रोथ को मजबूती देगा और नीतिगत दर कटौती के असर को अधिक प्रभावी ढंग से ट्रांसमिट करने में मदद करेगा, जिससे ग्रोथ को बूस्ट मिलेगा।
सस्ते लोन: बैंक के पास ज्यादा राशि होने से वह प्रतिस्पर्धा में कम ब्याज दरों पर लोन देने के लिए तैयार रहते हैं। इससे ग्राहकों को होम लोन पर्सनल लोन, कार लोन आदि में छूट मिल सकती है।
आसान लोन: बैंकों के पास अधिक नकदी से लोन पास करने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी। इससे खासकर छोटे व्यापारियों और नौकरीपेशा लोगों को राहत मिलेगी।
कम EMI: ब्याज दरें घटने से बैंक होम-ऑटो-पर्सनल लोन की दरें घटा सकते हैं, इससे रेपो रेट से लिंक्ड लोन की ईएमआइ घट जाएगी।
आकर्षक ऑफर: अधिक नकदी होने से बैंक ग्राहकों के लिए नई स्कीमें ला सकते हैं।
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यह वह न्यूनतम राशि होती है, जिसे बैंकों को आरबीआइ के पास जमा रखनी होती है। यदि बैंक के साथ 100 रुपए जमा हुए तो अब उसे आरबीआइ के पास इसमें से 3 रुपए जमा कराना होगा। बैंक शेष 97 रुपए ही लोन दे सकेंगे।
जब महंगाई बढ़ती है, तो RBI नकदी आरक्षित अनुपात (CRR) बढ़ा देता है, जिससे बैंकों के पास उधार देने के लिए कम पैसा रहता है। इससे बाजार में पैसे की आपूर्ति कम होती है और महंगाई पर नियंत्रण पाया जाता है। दूसरी ओर, जब अर्थव्यवस्था में सुस्ती आती है, तो RBI CRR घटाता है ताकि बैंक ज्यादा ऋण दे सकें और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा मिले। हाल की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में न केवल CRR में कटौती की गई, बल्कि रेपो रेट में भी 50 बेसिस पॉइंट की कमी की गई। यह दर्शाता है कि RBI अब आर्थिक मंदी की आशंका को गंभीरता से ले रहा है। MPC ने अपनी नीति को 'उदार' (एकोमोडेटिव) से बदलकर 'तटस्थ' (न्यूट्रल) कर दिया है, ताकि भविष्य में जरूरत के अनुसार लचीले ढंग से फैसले लिए जा सकें।