सरकारी कर्मचारियों की यूनियन ने सरकार से 8वें वेतन आयोग के सदस्यों के चयन और ToR को जल्द तैयार करने की अपील की है।
8th Pay Commission बनने का ऐलान हो चुका है। अब नरेंद्र मोदी सरकार को सबसे बड़ा जो काम करना है, उसमें Terms of Reference (ToR) सबसे महत्वपूर्ण कड़ी है। जानकार बताते हैं कि वेतन आयोग के गठन के साथ ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है। यह वह दस्तावेज है, जिसके आधार पर सैलरी, इंक्रीमेंट, प्रमोशन व पेंशन आदि तय होते हैं। केंद्रीय कर्मचारी यूनियन भी इसे जल्दी तैयार करने के लिए दबाव बना रही हैं। क्योंकि केंद्रीय कर्मचारियों की सैलरी और बेनिफिट का संशोधन जनवरी 2026 में डयू है। अगर समय पर कार्रवाई पूरी नहीं हुई तो इसमें देरी होने की संभावना है।
8वें वेतन आयोग से 1 करोड़ से अधिक केंद्रीय कर्मचारियों और पेंशनरों को फायदा होगा। जनवरी 2016 के 10 साल बाद 2026 में उनकी सैलरी बढ़ेगी। इसमें मुख्य बढ़ोतरी बेसिक सैलरी में होगी। सरकारी कर्मचारियों की यूनियन NC-JCM के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने बताया कि हमने सरकार से 8वें वेतन आयोग के सदस्यों के चयन और ToR को जल्द करने का आहृवान किया है।
अखिल भारतीय लेखा और लेखा परीक्षा समिति के महासचिव एचएस तिवारी के अनुसार 7th Pay Commission के गठन के दौरान एक ToR तैयार हुआ था। उस दौरान पे बैंड की जगह पे मैट्रिक्स ने ले ली थी। अब सरकार क्या समीकरण लाती है, वह देखना होगा। ToR में निम्न पहलू होते हैं:
सभी केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन, भत्ते और अन्य बेनिफिट की व्यापक समीक्षा करना। वर्तमान वेतन ढांचे में बदलाव की जरूरत की समीक्षा करना, विशेष रूप से मुद्रास्फीति, कॉस्ट ऑफ लिविंग और कर्मचारियों की डिमांड के अनुरूप।
रिटायर कर्मियों की पेंशन संरचना की समीक्षा करना। पुरानी पेंशन योजना बनाम न्यू पेंशन स्कीम से जुड़ी विसंगतियों पर विचार।
सभी मौजूदा भत्तों-HRA, DA, TA आदि का अध्ययन कर सिफारिश करना। जरूरत पड़ने पर नए भत्तों का सुझाव देना।
सैलरी में इंक्रीमेंट को Performance Evaluation से जोड़ने की संभावनाएं तलाशना। पदोन्नति के तरीके में पारदर्शिता बढ़ाने की सिफारिशें।
विभिन्न सेवाओं और संवर्गों में वेतन असमानताओं को कम करने के उपाय। महिलाओं, दिव्यांगजनों और दूरदराज क्षेत्रों में कार्यरत कर्मचारियों के विशेष मुद्दों पर सुझाव।
दफ्तर का वातावरण, कर्मचारियों के मानसिक स्वास्थ्य और वर्क-लाइफ बैलेंस पर ध्यान देने वाली नीतियां।
एक निश्चित अवधि (जैसे 18-24 महीने) में रिपोर्ट सौंपने की सिफारिश।
साथ ही साझीदारों के सुझाव लेना।