तमाम योजनाओं, लागत और इंजीनियरिंग कौशल के बावजूद यह यूनिट मरीजों के लिए फिलहाल उपयोग में नहीं लाई जा सकेगी। कारण स्टाफ की नियुक्ति की प्रक्रिया अब तक शुरू ही नहीं हो पाई है।
जिला अस्पताल परिसर में 21 करोड़ रुपए की लागत से बना क्रिटिकल केयर यूनिट और मेटरनिटी विंग का अत्याधुनिक भवन अब बनकर लगभग तैयार हो गया है। लेकिन तमाम योजनाओं, लागत और इंजीनियरिंग कौशल के बावजूद यह यूनिट मरीजों के लिए फिलहाल उपयोग में नहीं लाई जा सकेगी। कारण स्टाफ की नियुक्ति की प्रक्रिया अब तक शुरू ही नहीं हो पाई है।
भवन निर्माण का कार्य अंतिम चरण में है। अस्पताल प्रबंधन के अनुसार, बिजली फिटिंग और फर्निशिंग जैसे बचे हुए कार्यों को पूरा करने में अभी तीन महीने का समय और लगेगा। लेकिन सबसे बड़ी चुनौती इसके बाद शुरू होगी स्टाफ भर्ती प्रक्रिया। विशेषज्ञ डॉक्टर, नर्स, टेक्नीशियन, सफाईकर्मी और अन्य सहायक कर्मचारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया अभी तक शुरू भी नहीं हुई है। ऐसे में यूनिट को पूरी तरह क्रियाशील होने में कम से कम एक साल और लग सकता है। सिविल सर्जन डॉ. शरद चौरसिया ने स्पष्ट किया, भवन की तैयारी अंतिम दौर में है। इसके बाद स्टाफ की आवश्यकता होगी। नियमानुसार प्रक्रिया लंबी है, इसलिए उम्मीद है कि यूनिट अगले वर्ष तक ही मरीजों के लिए खोली जा सकेगी।
वर्तमान में जिला अस्पताल में करीब 450 बेड हैं, जो हमेशा मरीजों से भरे रहते हैं। नए भवन के शुरू होने के बाद अस्पताल की कुल बेड क्षमता 650 तक पहुंच जाएगी। इससे उन मरीजों को राहत मिलेगी जिन्हें फिलहाल जमीन पर या गैलरी में लेटकर इलाज कराना पड़ता है।
नए भवन में तीन अत्याधुनिक ऑपरेशन थिएटर का निर्माण किया गया है। इसके अलावा आइसीयू यानी गंभीर मरीजों के लिए सघन चिकित्सा इकाई तीसरी मंजिल पर बनाई गई है। हर बेड के साथ ऑक्सीजन सप्लाई लाइन और अन्य जरूरी मेडिकल इन्फ्रास्ट्रक्चर उपलब्ध रहेगा।
क्रिटिकल केयर यूनिट, 100 बेड, मेटरनिटी विंग 100 बेड
भवन के एक हिस्से में गंभीर हालत वाले मरीजों के लिए 100 बेड आरक्षित किए गए हैं। इनमें कार्डियक मरीज, गंभीर एक्सीडेंट केस, पोस्ट-ऑपरेटिव और अन्य इमरजेंसी मामलों को प्राथमिकता मिलेगी। महिलाओं के लिए अलग से साढ़े 7 करोड़ रुपए की लागत से मेटरनिटी यूनिट तैयार की गई है। इसमें लेबर रूम, ऑपरेशन थिएटर, आईसीयू, नवजात शिशु केंद्र आदि की सुविधाएं शामिल हैं।
फिलहाल जिला अस्पताल का मेटरनिटी वॉर्ड दूसरे फ्लोर पर संचालित हो रहा है, जो जगह की कमी और संसाधनों की सीमाओं से जूझ रहा है। नए भवन के संचालन में आते ही इस यूनिट को पूरी तरह से नए मेटरनिटी ब्लॉक में शिफ्ट किया जाएगा, जिससे महिलाओं और नवजातों को बेहतर उपचार सुविधा मिलेगी।
इस 21 करोड़ रुपए के प्रोजेक्ट का निर्माण मध्य प्रदेश भवन विकास निगम द्वारा किया गया है। इसमें आधुनिक तकनीक, विशेषत: आईसीयू वार्ड में ऑक्सीजन पाइपलाइन, एंटीबैक्टीरियल फ्लोरिंग, सेफ लाइटिंग और एयर हेंडलिंग यूनिट जैसी सुविधाएं शामिल की गई हैं। यूनिट की मशीनरी की खरीद के लिए ऑर्डर पहले ही दे दिए गए हैं।
यह यूनिट 2023-24 के बजट में मंजूर हुई थी और 2025 के मध्य तक इसे मरीजों के लिए चालू किया जाना था। लेकिन स्टाफिंग के लिए समय पर प्रक्रिया न शुरू होना यह दर्शाता है कि सरकारी योजनाएं समन्वय और क्रियान्वयन की गंभीर समस्याओं से जूझ रही हैं। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि अगर पहले से भर्ती की प्रक्रिया समानांतर रूप से चलाई जाती, तो जैसे ही भवन तैयार होता, यूनिट तुरंत चालू की जा सकती थी। अब, नए सिरे से स्टाफ चयन, ट्रेंनिंग और पदस्थापन की प्रक्रिया में ही महीनों लग जाएंगे।
स्थानीय जनप्रतिनिधियों और स्वास्थ्य अधिकारियों ने इस परियोजना की प्रगति पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया। न ही स्टाफिंग के लिए दबाव बनाया गया। परिणामस्वरूप, जिस सुविधा का लाभ हजारों मरीजों को मिलना था, वह कम से कम एक साल तक अधर में लटकी रहेगी।
1. फास्ट-ट्रैक भर्ती प्रक्रिया शुरू कराई जाए।
2. संविदा आधारित नियुक्ति के माध्यम से शुरुआती चरण में यूनिट शुरू की जा सकती है।
3. टेलीमेडिसिन और रोटेशनल डॉक्टरिंग मॉडल अपनाया जाए जब तक स्थायी स्टाफ नहीं आता।
4. स्थानीय मेडिकल कॉलेज और नर्सिंग कॉलेज के सहयोग से इंटर्न को यूनिट में जोड़ा जाए।
छतरपुर जिला अस्पताल में बना यह नया भवन कागजों पर एक आदर्श मेडिकल यूनिट की तस्वीर पेश करता है, लेकिन जमीनी स्तर पर यह अभी केवल एक खाली ढांचा है। जिस उद्देश्य से यह भवन तैयार किया गया था मरीजों को गंभीर बीमारियों और मातृत्व संबंधी जटिलताओं के समय अत्याधुनिक इलाज उपलब्ध कराना वह कमजोर योजना, प्रक्रियागत विलंब और समन्वय के अभाव के कारण अधूरा रह गया है।