स्वास्थ्य विभाग ने एक साल पहले आदेश जारी किया था, लेकिन अब तक इसकी स्थिति जस की तस बनी हुई है। सीएमएचओ ने इस सेंटर के संचालन के लिए एक प्राचार्य की नियुक्ति की थी और उपयंत्री ने भवन में रंगाई पुताई के साथ लाइट फिटिंग भी करवा दी थी।
जिला अस्पताल परिसर के पिछले हिस्से में स्थित एएनएम ट्रेनिंग सेंटर पिछले 9 वर्षों से बंद पड़ा हुआ है। इसे फिर से शुरू करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने एक साल पहले आदेश जारी किया था, लेकिन अब तक इसकी स्थिति जस की तस बनी हुई है। सीएमएचओ ने इस सेंटर के संचालन के लिए एक प्राचार्य की नियुक्ति की थी और उपयंत्री ने भवन में रंगाई पुताई के साथ लाइट फिटिंग भी करवा दी थी। हालांकि, शासन ने अभी तक न तो बजट आवंटित किया है और न ही इस सेंटर को शुरू करने के लिए आवश्यक फर्नीचर और उपकरण प्रदान किए हैं। इसी वजह से, नियुक्त प्राचार्य चित्रलेखा ठड्के को वापस सीएमएचओ कार्यालय भेज दिया गया है और भवन में फिर से ताला लगा दिया गया है। ऐसे में अगले सत्र में इस सेंटर के संचालन की संभावना काफी कम दिखाई दे रही है।
इस एएनएम ट्रेनिंग सेंटर की स्थापना 1964 में हुई थी और यह 2016 तक संचालित होता रहा। इस दौरान सेंटर का परीक्षा परिणाम हमेशा अच्छा रहा और यहां छात्रों को उच्च गुणवत्ता की ट्रेनिंग दी जाती थी। सेंटर का अपना परिसर, मेस, लैब और कंप्यूटर क्लास की व्यवस्था थी। हालांकि, 2016 में प्रदेश शासन के आदेश पर इसे झाबुआ स्थानांतरित कर दिया गया। शासन ने इसे बंद करने का कारण यह बताया कि 50 सीटों में से केवल 25 सीटें ही पूरी हो पा रही थीं।
सेंटर को फिर से शुरू करने के लिए फरवरी 2024 में प्रदेश शासन ने आदेश जारी किया। इस आदेश के तहत अगस्त 2024 में 40 छात्राओं को एडमिशन देने की योजना बनाई गई थी। इस कार्य के लिए विभाग ने भवन में लाइट फिटिंग, पंखे, और ब्लैक बोर्ड की व्यवस्था की थी। लेकिन इसके बाद से अब तक फर्नीचर, शैक्षणिक सामग्री और उपकरण के लिए बजट की स्वीकृति नहीं मिली।
सीएमएचओ डॉ. आरपी गुप्ता ने बताया, "हमने सेंटर को फिर से शुरू करने के लिए फर्नीचर और उपकरण सहित अन्य आवश्यक सामग्री की सूची तैयार की है और इसके लिए विभाग के अधिकारियों से 30 लाख रुपए के बजट की मांग की है। कलेक्टर के माध्यम से हम लगातार रिमाइंडर भेज रहे हैं। यदि अगले महीने तक बजट जारी हो जाता है, तो हम अगले सत्र में इस सेंटर को शुरू कर सकेंगे।"
जिले में एएनएम ट्रेनिंग सेंटर बंद होने का सीधा फायदा अब प्राइवेट संस्थानों को हो रहा है। ये संस्थान छात्रों से अधिक फीस वसूल रहे हैं, जबकि गुणवत्ता में भी गिरावट आई है। यहां पढ़ाई की कोई सुनिश्चित व्यवस्था नहीं होती, और शिक्षा के नाम पर छात्रों से सिर्फ पैसे की वसूली की जा रही है। यह स्थिति न केवल छात्रों के लिए, बल्कि जिले की समग्र स्वास्थ्य सेवा के लिए भी हानिकारक हो सकती है।
एएनएम ट्रेनिंग सेंटर के बंद होने के बाद कुछ महीनों तक यह भवन खाली पड़ा रहा, जिसके बाद अस्पताल प्रबंधन ने इसे सिविल सर्जन कार्यालय के रूप में उपयोग करना शुरू कर दिया। इस दौरान, सेंटर की अन्य व्यवस्थाएं पूरी तरह से चौपट हो गईं। भवन में धूम्रपान के कारण गंदगी फैल गई और नालियां चोक हो जाने के कारण गंदा पानी भी भर गया। अब इस भवन की मरम्मत और सफाई की आवश्यकता है ताकि इसे फिर से उपयोग के लायक बनाया जा सके।
अगर शासन जल्द से जल्द इस मुद्दे पर ध्यान नहीं देता और बजट की स्वीकृति नहीं मिलती, तो अगले सत्र में भी यह एएनएम सेंटर शुरू नहीं हो पाएगा। इससे जिले की महिलाओं को नर्सिंग की शिक्षा प्राप्त करने में कठिनाई होगी और उन्हें प्राइवेट संस्थानों के झांसे में आकर अधिक फीस चुकानी पड़ेगी।